"विरहिणी"
मैं तुम्हें बताऊँ क्या दिलबर
!
ह्रदय उपवन में वास तेरा l
क्या कहूँ भला शब्दाश्रय से,
मिलन चाह से ह्रदय भरा l
कुछ शून्य भाव को नयन लिए,
रसपान चाह से अधर भरे l
कुछ नये - नये नित उमंग लिए,
बिन तेरे जीवन विरह भरा l
अनकहे शब्द छाए मन में,
बन बादल और हुवे गहरे l
हैं भाव बड़े गहरे- गहरे,
नयन कोर से बरस पड़ा l
इत- उत बातों से मन न भरे,
नेह लगन है खरा- खरा l
है हूक तिरोहित ह्रदय में,
बन अश्रु बूंद दृग से ढरा l
रश्मि पाण्डेय
बिंदकी, फतेहपुर