होली पर विशेष: होली पर लाल रंग का गुलाल लगाना क्यों होता है शुभ?
बिंदकी फतेहपुर।होली क्यों मनाई जाती है।होली का मानव जीवन में क्या असर पड़ता है।होली किस मुहूर्त पर जलना शुभ होता है।किस किस राशि पर होली शुभ है।किस किस राशि वाले लोगों होली नहीं तापनी चाहिए आदि विषयों पर हमारे संवाददाता ने ज्योतिषाचार्य आचार्य पं. विवेक त्रिपाठी से विस्तार से चर्चा किया। आचार्य पं. विवेक त्रिपाठी ने होली के त्योहार पर प्रकाश डालते हुए बताया कि बुराई पर अच्छाई की जीत की प्रतीक होली का सामाजिक महत्व भी है। यह एक ऐसा पर्व होता है जब लोग आपसी मतभेद भुलाकर एक हो जाते हैं। मान्यता है कि इस दिन अगर किसी को लाल रंग का गुलाल लगाया जाए तो सभी तरह के मनभेद और मतभेद दूर हो जाते हैं। क्योंकि लाल रंग प्यार और सौहार्द का प्रतीक होता है। इसलिए यह आपसी प्रेम और स्नेह बढ़ाता है। वहीं धार्मिक महत्व की बात करें तो इस दिन होलिका में सभी तरह की नकारात्मक शक्तियों का नाश हो जाता है और सकारात्मकता की शुरुआत होती है।
होली की परंपराएं पूरे देश में अलग-अलग हैं और इसकी जड़ें भारतीय पौराणिक कथाओं में हैं। कई स्थानों पर यह त्यौहार प्राचीन भारत में एक राक्षस राजा हिरण्यकशिपु की कथा से जुड़ा हुआ है। हिरण्यकशिपु ने विष्णु के एक समर्पित उपासक, अपने पुत्र प्रह्लाद को मारने के लिए अपनी बहन होलिका की मदद ली । प्रह्लाद को जलाने के प्रयास में, होलिका उसके साथ एक चिता पर बैठ गई, जिसने उसे आग से बचाने वाला लबादा पहना। लेकिन लबादे ने प्रह्लाद की रक्षा की और होलिका जल गई। बाद में उस रात विष्णु हिरण्यकशिपु को मारने में सफल रहे, और इस प्रकरण को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में घोषित किया गया। भारत में कई जगहों पर इस अवसर को मनाने के लिए होली से एक रात पहले एक बड़ी चिता जलाई जाती है।
ज्योतिषाचार्य आचार्य पंडित विवेक त्रिपाठी
पूर्णिमा तिथि 6 मार्च को शाम 6 बजकर 17 मिनट पर शुरू हो जाएगी और 7 मार्च 2023 मंगलवार 06:09 मिनट तक रहेगी. लेकिन होलिका दहन 7 मार्च को किया जाएगा. होलिका दहन के लिए शुभ समय 7 मार्च 2023 को शाम 6:24 मिनट से रात 8:51 मिनट तक है. इसके बाद 8 मार्च को रंगों की होली खेली जाएगी।
स्मृतिसार नामक शास्त्र के मुताबिक जिस वर्ष फाल्गुन की पूर्णिमा तिथि दो दिन के प्रदोष को स्पर्श करे, तब दूसरी पूर्णिमा यानी अगले दिन में होली जलाना चाहिए।
इस बार भी पूर्णिमा तिथि 6 मार्च और 7 मार्च दोनों दिन प्रदोष काल को स्पर्श कर रही है, ऐसे में 7 मार्च को होलिका दहन करना शुभ होगा
*6 मार्च को इसलिए नहीं जलेगी होली*
6 मार्च को होलिका दहन न होने का एक और कारण ये है कि इस दिन पूर्णिमा तिथि पर भद्रा का साया रहेगा. 6 मार्च सोमवार में शाम 4:18 मिनट से भद्रा शुरू हो जाएगी और 7 फरवरी 2023 को सुबह 05:15 बजे तक रहेगी. भद्रा का वास भी पृथ्वीलोक में होगा. भद्रा के दौरान किसी भी तरह के शुभ काम करना वर्जित होता है, वरना उसके अशुभ परिणाम झेलने पड़ सकते हैं. निर्णय सिंधु ग्रंथ में लिखा है कि भद्रा में अगर होली जलायी जाए तो देश को बड़ी हानि हो सकती है और देशवासियों को बड़े भयानक कष्ट का सामना करना पड़ सकता है. 7 मार्च की पूर्णिमा तिथि भद्रामुक्त होगी, ऐसे में 7 मार्च को ही होलिका दहन किया जाना चाहिए.
*पूजन विधि*
होलिका दहन की पूजा और उसमें अग्नि प्रज्जवलित हमेशा शुभ मुहूर्त में करना चाहिए. होलिका दहन की पूजा के लिए सबसे पहले पूर्व दिशा में मुंह करके होलिका को जल, रोली, अक्षत, फूल, पीली सरसों, गुलाल और मिष्ठान अर्पित करें. साथ ही नई फसल यानी कि गेहूं और चने की बालियां चढ़ाएं. इसके बाद होलिका की सात बार परिक्रमा करें.