भोपाल। पिछले दो सालों में गिर अभयारण्य में 313 शेरों की मौत तो हुई है लेकिन उसमें से शिकार या अप्राकृतिक कारणों से मात्र 23 फीसद शेर ही मारे गए हैं। बाकी शेरों की मौत आपसी भिड़ंत या उम्रदराज होने के कारण हुई है। शावक मात्र पांच फीसद ही बच पाते हैं, इस कारण शेरों की मौत का यह आंकड़ा बड़ा लग रहा है लेकिन 2015 के आंकड़ों से तुलना की जाए तो तब गुजरात में 523 शेर थे और अब 674 संख्या के साथ 29 फीसद वृद्धि दर्ज की गई है। यह दावा गुजरात के वन मंत्री गणपत सिंह वासवा ने दैनिक जागरण के सहयोगी प्रकाशन 'नईदुनिया' से विशेष बातचीत में किया। प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश
इतनी बड़ी संख्या में शेरों की मौत हो रही है फिर मध्य प्रदेश को केवल 10 शेर देने के लिए गुजरात राजी क्यों नहीं है?
सुप्रीम कोर्ट जो कहेगा,वह मानेंगे। मध्य प्रदेश के कूनो पालपुर में शेरों की नई बसाहट के लिए सुप्रीम कोर्ट ने गाइडलाइन दी है। उसका पालन जरूरी है।
शेर देने के लिए सुप्रीम कोर्ट तो कह चुका है।
नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आईयूसीएन (इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरर्वेशन ऑफ नेचर) की गाइडलाइन का पालन होना चाहिए। तो उसके द्वारा जो कहा गया है,वैसी सुविधाएं होना चाहिए।
क्या मप्र में शेरों को बसाने के लिए सुविधाएं आईयूसीएन जैसी नहीं हैं।
ये मैं नहीं कह रहा हूं। सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा है,उसका पालन अनिवार्य है।