"चारण"
विरुदावलियाँ गा- गा करके,
मक्खन को लगाना न आया l
जो हिय में है वो लब मेंं है,
बस इतना करना ही आया l
जो स्नेह हमारे ह्रदय में,
बस वो ही दिखाना ही आया l
जो हिय में है वो लब में है,
बस इतना कहना ही आया l
विरुदावलियाँ गा -गा करके,
मक्खन को लगाना न आया l
माना जग में है कदर वहीं,
फर्जी गुणगान जिसे भाया l
हम सीख नहीं अब तक हैं सके,
जन मुर्ख बनाना न भाया l
जो हिय में है जो लब में है,
बस इतना कहना ही आया l
विरुदावलियाँ गा- गा करके,
मक्खन को लगाना न आया l
माना बस विवश है वो ही मन,
जिस मन को दिखावा न भाया l
मुख सम्मुख कह के प्रीत वचन,
करना नुकसान नहीं आया l
जो हिय में है वो लब में है,
बस इतना कहना ही आया l
कैसे जन बन जाएं वो हम,
जिसके मन में है प्रीति नहीं l
जग के उच्चासन को पाना,
जिसके मन की है रीति नई l
झूठी वाणी को कह- कह कर,
नुकसान को करना न आया l
जो हिय में है वो लब में है,
बस इतना कहना ही आया l
विरुदावलियाँ गा-गा करके,
मक्खन को लगाना न आया l
रश्मि पाण्डेय
ARP MALVAN ,BINDIKI, FATEHPUR