शीर्षक =मुरझाए क्यों हैं
हमसे जो नफरत करते थे
आज मिले मुस्काये क्यों हैं,
पहले कलियों सा खिलते थे
अब इतना मुरझाए क्यों हैं,
जीवन में दुबारा न मिलनें की
कभी कसम तो खा ली थी,
आज अचानक देख राह में
पास हमारे आये तो हैं ,
लेकिन जो कलियों से खिलते थे
अब इतना मुरझाए क्यों हैं,
कहाँ गया फूलों सा चेहरा
कहाँ खो गयी होठों की लाली,
कहाँ वो चंचल शोख अदायें
हिरनी जैसी चाल मतवाली,
एक साथ में इतनी बातें सुन
वो थोड़ा सा शरमाये तो हैं,
लेकिन जो कलियों से खिलते थे
अब इतना मुरझाए क्यों हैं,
वो बोले सोच पुरानी यादें
पास आपके आये तो हैं,
उनकी दर्द भरी खामोशी,
देखकर हम घबराये तो हैं,
जो हरदम कलियों से खिलते थे
अब वो इतना मुरझाए क्यों हैं ।
रोहित कुमार त्रिपाठी
खागा फतेहपुर