"कीट"
सीख करके गुनगुनाना ,
राह में जब मैं चली l
राह सीधी थी मगर,
कुछ ठोकरें जमकर लगीं l
सामने पत्थर हटा ,
चुन कंटकों को फ़िर चली l
दूर कर बाधा को हर ,
मैं मुस्कुरा चलने लगी l
देखकर जज़्बा मेरा ,
राहों की विपदा भी डरी l
कुछ कीट सम्मुख आँख मेरे ,
यूँ फड़फड़ाने भी लगे l
कुछ दिखा कर भय ,
मुझे डराने भी लगे l
कुछ लांघ मर्यादा,
मेरे सम्मान में दे चोट भी l
कर कपट, छल ,असत्य से,
कुछ कीट धमकाने लगे l
पर मेरे आदर्श ने,
मुझको सिखाया सीख ये l
थामकर के सत्य का कर,
सामना विपदा का कर l
ज़िंदगी की धूप से पर,
छाँव की;उम्मीद न कर l
सत्य का कर थाम कर,
मैं मुस्कुरा चलने लगी l
देख कर जज़्बा मेरा,
राहों की विपदा भी डरी l
राह सीधी थी मग़र,
कुछ ठोकरें जमकर लगीं l
सामने पत्थर हटा,
चुन कंटकों फ़िर चली l
सीख करके गुनगुनाना,
राह में जब मैं चली l
रश्मि पाण्डेय
बिंदकी, फतेहपुर