" प्रार्थना "
मैं चली तुम्हारे मार्ग प्रभु!
मुझको दुनिया से क्या लेना l
पाखंड नहीं रुचिकर मुझको,
एकांत मेरा अब है रहना l
क्या करूँ जोड़ तिनका- तिनका,
जिसको है पड़े यहीं रहना l
है आत्मतृप्ति मुझको प्रभु जी!
जो तुमने दिया मुझे इतना l
हो प्रीति तुम्हारे चरणों में,
तुम दया दृष्टि इतनी रखना l
मैं नाम तुम्हारा लूँ निशिदिन,
रसना तव नाम करे रटना l
मैं मूढ़, अकिंचन हूँ प्रभु जी!
मति भ्रांत मेरी न तुम करना l
गुण गान तुम्हारा करूँ सदा,
पथ भ्रष्ट मुझे न तुम करना l
सानिध्य तुम्हारा मुझे मिले,
सुख दुःख के सखा मेरे बनना l
तुम तक ही चाह मेरी अब है,
सद्गति की राह मुझे देना l
रश्मि पाण्डेय
बिंदकी, फतेहपुर