"दृढ़ता"
यकीनन दर्द मिलता जब,
वहीं परिपूर्णता मिलती l
हताशा में पड़े मन को,
कोई शक्ति भी है मिलती l
ह्रदय संवेदना मिलती,
गह्वरता भी है मिलती l
शिकायतों के भी मध्य,
मधुर मुस्कान भी मिलती l
ह्रदय के तार झंकृत हो,
अभौतिकता में जुड़ते हैं l
कहाँनी को समेटे मन,
गहनता में भी गढ़ते हैं l
कई दृष्टि लिए दृष्टि,
बहुत कुछ देख लेते हैं l
निगाहों ही निगाहों में,
बहुत कुछ सार कहते हैं l
मधुर मुस्कान के पीछे,
कई दर्द ए बयाँ होते l
इन्हीं प्रतिकूलताओं से,
मनःस्थिति भी दृढ़ होती l
यकीनन दर्द मिलता जब,
वहीं परिपूर्णता मिलती l
रश्मि पाण्डेय
बिंदकी, फ़तेहपुर