कभी झरने की झर झर में,

 "मेरी दुनिया"



कभी झरने की झर झर में, 


           कभी संगीत में मिलकर। 

कभी कोयल की कू- कू में, 

          कभी पतझर के संग मिलकर। 

कभी धरती के सम बनकर, 

           कभी अम्बर के सम होकर l

कभी पाषाण सम होकर, 

           कभी कोमल भी अति होकर l

तुम्हारे साथ चलती हूँ, 

            तुम्हारी ढाल बनती हूँ l

बड़े ही लाज, हया के संग, 

             तुम्हारी शान बनती हूँ l

तुम्हें परिपूर्णता देती, 

             तुम्हारी राह भी बनती l

तुमसे चाहती इतना, 

             कभी सम्मान न हरना l

कभी विपरीत स्थित में, 

             हमें तन्हां भी न करना l

हमें ह्रदय बना कर तुम, 

             बना कविता हमें देना l

मैं नारी हूँ नहीं अबला, 

             बहुत सहने की भी क्षमता l

कभी ह्रदय दुखाना न, 

             किये धारण हूँ कोमलता l

हमेशा साथ रहना तुम, 

             न जाना दूर कटु होकर l

बनाना है कुटुंब हमको, 

             रहना साथ में मिलकर l




रश्मि पाण्डेय

बिंदकी, फ़तेहपुर

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