"परचम"
वीर हैं सच्चे ; दुनिया के,
हम झूठ भगाने आये हैं l
सगरी दुनिया में परचम को,
फहराने सच का आये हैं l
तुम दीन हीन समझो न हमें,
हम दीप ज्ञान का लाये हैं l
सगरी दुनिया में परचम को,
फहराने सच का आये हैं l
तुम नाम कमा लो कितना भी,
पर हार हमीं से पाओगे l
अंतस में छुपा झूठ को तुम,
जो कपट घोलते हो विष का l
दूर कपट के विष को हम,
अमरत्व दिलाने आये हैं l
सगरी दुनिया में परचम को,
फहराने जग में आये हैं l
कितनी भी कोशिश कर लेना,
पर नहीं मात दे पाओगे l
झूठ के दामन में लिपटे,
छल कपट भगाने आये हैं l
लेकर के रूप अटल अपना,
हम धरा पे रहने आये हैं l
सगरी दुनिया में परचम को,
फहराने सच का आये हैं l
चल कर चाल छद्म का तुम,
कभी हरा न पाओगे l
हम दीप ज्ञान का लेकरके,
अज्ञान भगाने आये हैं l
सागरी दुनिया में परचम को,
फहराने सच का आये हैं l
हम देख चुके कायरता को,
जो ढाल तुम्हारे जीवन की l
हमने समझा हर क्षुद्र भाव,
पहचान तुम्हारे जीवन की l
तूफा़न में भी डट कर के
हम दीप जलाने आये हैं l
सगरी दुनिया में परचम को,
फहराने सच का आये हैं l
रश्मि पाण्डेय
बिंदकी फ़तेहपुर