हाथी पकड़ने वाले के समान ही सन्त भी मन को ज्ञान रूपी गड्ढे में डालकर कमजोर कर साधते हैं

 हाथी पकड़ने वाले के समान ही सन्त भी मन को ज्ञान रूपी गड्ढे में डालकर कमजोर कर साधते हैं



जब तक मान-सम्मान, धन-दौलत, विद्वता-ज्ञान का भूत सवार रहता है तब तक सन्तों की बात समझ में नहीं आती


सन्त मनुष्य शरीर में होने से वैसा व्यवहार करते हैं लेकिन उनकी देख-रेख, अनुभव, ज्ञान, बुद्धि, दुनिया से बहुत अलग होती है


उज्जैन (मध्य प्रदेश)।सब जीवों के पिता सतपुरुष द्वारा जीवों को समझा-बता कर अपने असला घर सतलोक वापिस ले चलने के लिए इस धरती पर मनुष्य शरीर में भेजे गए उन्ही के साक्षात अवतार, काल के एजेंट मन को काबू में करवा कर घर चलने का रास्ता नामदान बताने वाले, दुःख-तकलीफों में आराम दिलाने वाले, थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल पर जोर देने वाले और उसे करवाने वाले, इस समय के पूरे समर्थ सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी ने बाबा जयगुरुदेव के मासिक भंडारा कार्यक्रम में 28 अप्रैल 2022 को उज्जैन आश्रम पर दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर प्रसारित संदेश में बताया कि यह दुनिया और दुनिया की चीजें कोई भी काम आने वाली नहीं हैं। बस खाने-पीने, मौज-मस्ती में लगे हो। हाथी खाने के बाद झूमता हुआ तोड़-फोड़ करता चलता है। हाथी पकड़ने वाले फायदा उठाते हैं। वो खाने की चीज गड्ढे में डाल कर ढक देते हैं। हाथी गिर जाता है। 10-15 दिन भूखा-प्यासा पड़ा रहता है। बिना आहार के कमजोर हो जाता है। उसके बाद हाथी को निकाल कर अपने अनुसार उसे साधता है। ऐसे ही सन्त होते हैं। जब वे देखते हैं कि जीव दुनिया की तरफ भाग रहे हैं और इंद्रियों के घाट पर बैठ कर रस ले कर मन को मोटा कर रहे हैं, हाथी की तरह से तब वो मन को कमजोर करने के लिए उपाय रूपी गड्ढा बनाते हैं। जैसे शरीर से जब कर्म बनते हैं तो शरीर से ही सेवा, भजन करने से कर्म कटते हैं। जब तक कर्म नहीं कटते, मन कमजोर नहीं होता, इंद्रियों के घाट पर बैठकर मन रस लेने से नहीं मुड़ता तब तक सन्तों की बातें समझ में नहीं आती हैं। जब तक मान-सम्मान, धन-दौलत, विद्वता-ज्ञान का भूत सवार रहता है तब तक सन्तों की बात समझ में नहीं आती।


*सन्त ज्ञान रूपी गड्ढा में मन को डाल कर कमजोर कर देते हैं*


क्योंकि सन्तों की बात अलग होती है। उनकी देख-रेख, अनुभव, विद्या, ज्ञान दुनिया के अनुभव, ज्ञान से अलग होता है। रहते तो इसी देश-समाज में, इसी धरती का अन्न खाते, पानी पीते हैं, मनुष्य शरीर जैसा ही टट्टी-पेशाब करते हैं लेकिन उनका ज्ञान और बुद्धि, जीवों को घर कैसे पहुंचाया जाए- यह उपाय अलग होता है। सन्त जीवों को समझाते-बताते हैं, घर की याद दिलाते हैं, ज्ञान रूपी गड्ढा में डालकर मन को कमजोर कर देते हैं, इंद्रियों के तरफ से हटा करके उधर लगाते हैं। 


*सन्त मन को कमजोर करके युक्ति बता करके जीवात्मा को अपने घर मालिक के पास पहुंचाया करते हैं*


अभी तो आदमी कहता कि हम (कमाकर) लाएंगे नहीं तो खाना नहीं मिलेगा। अभी तो खाने के लिए ही सब कुछ कर रहा है। उसको अहंकार है कि मेरे पास है। लेकिन अगर नहीं है, नहीं मिला उसको तो भगवान को याद करता है। फिर कहता है हमको तो आपका (प्रभु का) ही सहारा है, आपके ही देने पर मिलेगा। फिर वह मानता है। इसी तरह से (सन्तों के उपाय से) मन कमजोर हो जाता है तब फिर वह युक्ति बता कर इस जीवात्मा को अपने घर मालिक के पास पहुंचा दिया करते हैं, जिस काम के लिए मनुष्य शरीर मिला है।


*सन्त उमाकान्त जी के वचन*


जीवात्मा का कल्याण वक्त के गुरु से ही होता है। नामदान देने वाला एक समय पर एक ही रहता है। बिना आदेश के कोई किसी को नामदान दे दे तो फलीभूत नहीं होता। साधक बनकर या नामदान लेकर किसी को धोखा दिया तो सख्त सजा मिलेगी। आसानी से कोई चीज नहीं मिलती है, मेहनत करनी पड़ती है। सन्त उमाकान्त जी का सतसंग प्रतिदिन प्रातः 8:40 से 9:15 तक (कुछ समय के लिए) साधना भक्ति टीवी चैनल और अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर प्रसारित होता है।

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