फतेहपुर।
पंद्रह घंटे की यात्रा कर अपनी मिट्टी में वापस लौटे श्रमिकों को शाम तक खाना नसीब नहीं हुआ। उस पर रूटीन चेकअप के नाम पर सभी श्रमिकों को दिन भर बिठाए रखा गया। संक्रमण काल में 1100 किलोमीटर की यात्रा कर श्रमिक अपने गृह जनपद लौटे थे। दिन भर प्यासे रहने के बाद दोपहर चार बजे इन्हें पानी मिल सका। गुजरात के सूरत से बांदा के लिए चलाई गई श्रमिक स्पेशल ट्रेन में जिले के 36 श्रमिक यात्रा करके आए। बांदा से इन सभी को रोडवेज बसों से लाया गया। घर भेजने से पहले सभी का स्वास्थ्य परीक्षण कराने के लिए इन सबको शांतीनगर स्थित महात्मा गांधी स्नातकोत्तर महाविद्यालय ले जाया गया। यात्री प्रदीप पाल ने बताया कि बुधवार की दोपहर बारह बजे सूरत से चले थे वहां से हमें खाने के पैकेट देकर भेजा गया था। इसके बाद रास्ते भर कहीं कुछ नहीं मिला। गुरुवार की सुबह बांदा पहुंचे तो यहां सूजी का हलवा दिया गया। बांदा से बस के माध्यम से एमजी कॉलेज तक आ गए और यहां दिनभर रहने के बाद भी भोजन की व्यवस्था नहीं की गई। सूरजभान ने बताया कि ग्यारह सौ किलोमीटर की यात्रा खाली पेट करने के बाद उम्मीद थी कि अपने जिले पहुंचेंगे तो जरूर कुछ न कुछ खाने को मिलेगा, मगर यहां भी बाहरियों जैसा व्यवहार किया गया। महेंद्र सिंह ने बताया कि दोपहर बारह बजे से पानी मांग रहे थे लेकिन पानी तक नहीं मिला। बार-बार कहने के बाद दोपहर चार बजे पानी का टैंकर आया, तब जाकर पानी पानी से ही पेट भर लिया। मेघनाथ ने बताया कि घर वापसी कर पाना इतना आसान नहीं रहा। पहले टिकट के लिए निर्धारित 600 रुपये जमा करने के लिए लाइन में लगे। इसके बाद जब टिकट का मैसेज मोबाइल में आया तो दो दिन बाद टिकट और टोकन लेने के रातभर लाइन में लगे। तब कहीं अगली सुबह टे्रन मिली। यहां पहुंचने के बाद स्वास्थ्य परीक्षण में ही पूरा दिन बीत गया।