भारतीय बाजार में महामारी के बाद 'स्वदेशी' नई वास्तविकता बनकर उभरेगा?


नई दिल्ली । 'स्वदेशी' अब केवल स्वदेशी जागरण मंच का सिद्धांत ही नहीं रह गया है, जो अपनी स्थापना के बाद से भारतीय उत्पादों की पैरवी कर रहा है, बल्कि यह तेजी से एक जमीनी हकीकत बनता दिख रहा है। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसके वैचारिक प्रतिपालक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) दोनों एक ही समय पर इस मुद्दे पर एक साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं, क्योंकि कहीं न कहीं कोविड-19 के प्रकोप से बाजार के हालात को देखते हुए इसका मूल्यांकन किया जाना जरूरी हो गया है।

स्वदेशी के लिए स्वदेशी जागरण मंच की मांग बेशक आरएसएस के समर्थन में थी, लेकिन संघ ने इसे इतना स्पष्ट रूप से कभी नहीं दर्शाया है, कम से कम तब तक, जब कोरोना महामारी कहर बरपा रही है।

हाल ही में एक वीडियो प्रेस कॉन्फ्रेंस में विशेष रूप से भारत में काम कर रहे विदेशी मीडिया को संदेश देते हुए आरएसएस के संयुक्त महासचिव दत्तात्रेय होसबले ने कहा कि आत्मनिर्भरता और स्वदेशी न केवल भारत के लिए बल्कि महामारी के बाद दुनिया के सभी देशों के लिए नई वास्तविकता होगी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कम से कम दो अवसरों पर 'आत्मनिर्भरता' की आवश्यकता पर बल दिया है।

सरकारी सूत्रों का कहना है कि इसका मतलब यह नहीं है कि सरकार सभी विदेशी चीजों को बदल रही है, लेकिन भारतीय व्यवसायों, विशेषकर सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग (एमएसएमई) क्षेत्र को समर्थन देना चाहती है।

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी पहले ही इस क्षेत्र के लिए एक विशेष आर्थिक पैकेज की तत्काल आवश्यकता पर जोर दे चुके हैं। कई लोगों का मानना है कि वह ये बात केवल व्यक्तिगत तौर पर ही नहीं बोल रहे थे।

हालांकि सरकार अभी भी विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) को आकर्षित करने और चीन से दूर कंपनियों को भारत में स्थानांतरित करने के लिए प्रयासरत है।

स्वदेशी जागरण मंच के अश्वनी महाजन के अनुसार, भारत में फार्मा कंपनियों के अधिग्रहण से नौकरियां नहीं पैदा होती हैं। उनका दावा है कि जब भारत में आने वाला एफडीआई अपने घरेलू बाजार को प्रभावित किए बिना यहां से निर्यात करना शुरू करता है, तो भारत को लाभ होता है। वर्तमान परिदृश्य में, कई कंपनियों ने भारत सरकार और राज्य सरकारों से संपर्क किया है।

क्या इसका मतलब यह है कि भारत एक महामारी के बाद वाली स्थिति को देखते हुए बाजार की ओर बढ़ रहा है, जहां स्वदेशी उत्पाद एफडीआई प्रवाह के सामने कामयाब रह सकते हैं? महाजन के अनुसार, निवेश का रुझान ऐसा बताता है।

हालांकि भारत डंपिंग रोधी शुल्क और आयात शुल्क बढ़ाने जैसी अपनी 'स्वदेशी' बाजार की रक्षा करने के लिए भी प्रयारसत दिख रहा है। अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि कुछ समय के लिए भारत में पीपीई किटों की कमी ने मोदी सरकार की रणनीति को फिर से गति प्रदान कर दी है।

जब महामारी शुरू हुई तो भारत ने एक भी पीपीई किट का उत्पादन नहीं किया था, लेकिन तात्कालिकता और धीमी आयात दर ने भारत को यहां उत्पादन शुरू करने के लिए मजबूर किया और अब प्रतिदिन 2.06 लाख पीपीई किट का उत्पादन किया जा रहा है।

इस बीच महामारी से जंग लंबी खिंचती देखकर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर ने भी सस्ता विकल्प विकसित कर लिया है।

सरकारी सूत्र इस बात पर जोर देते हैं कि घरेलू उत्पादन के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार ने नए सिरे से शीर्ष स्तर पर निर्णय लिया है। सूत्र ने कहा कि भारत की क्षमता इन किटों के बड़े पैमाने पर उत्पादन के साथ ही हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वाइन गोलियों के साथ दुनिया को आपूर्ति करने की है। अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा इसके लिए एक व्यक्तिगत तौर पर गुजारिश करने के बाद भारत ने अपने आत्मनिर्भरता या स्वदेशी के मुद्दे को बहुत गंभीरता से लिया है।

हाल ही में राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस पर एक वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से चुनिंदा ग्राम प्रधानों के साथ बातचीत करते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस ओर इशारा भी किया था।

उन्होंने कहा था, "कोरोनावायरस हमारे सामने नई चुनौतियां लेकर आया है, जिनके बारे में हमने सोचा भी नहीं था। महामारी ने हमें एक नया सबक सिखाया है। हमें आत्मनिर्भर बनना होगा। हमें आत्मनिर्भर बनना होगा।"


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