मजदूर दिवस में भूखे प्यासे पैदल चलने को मजबूर



बिदकी फतेहपुर
कोरोना वायरस संक्रमण के चलते लॉक डाउन की स्थिति चल रही है मजबूर मजदूर हजारों किलोमीटर भूखे प्यासे  पैदल चलकर किसी तरह घर पहुंचना चाहता है उसको मजदूर दिवस का कोई मतलब समझ में नहीं आता।
            कोरोना वायरस संक्रमण वैश्विक महामारी बन चुकी है अन्य देशों की तरह भारत देश भी इससे प्रभावित है कोरोना वायरस संक्रमण के चलते लॉक डाउन की स्थिति चल रही है। देश के सभी छोटे-बड़े शहरों में उद्योग ठप हैं। छोटे-मोटे धंधे भी नहीं चल रहे जिसके कारण पूरे देश के मजदूर बेरोजगार हो गए हैं उनके सामने खाने-पीने की समस्या हो गई है इसी के चलते वह लोग पैदल ही अपने घरों को वापस जा रहे हैं पैदल जाते समय बहुत कम लोग उनके खाने-पीने की समस्या पूछ रहे हैं चिलचिलाती धूप में उनका बस एक ही लक्ष्य किसी तरह हजारों किलोमीटर पैदल चलने के बाद उनका घर मिल जाए आज 1 मई मजदूर दिवस है लेकिन इन लाखों मजदूरों को इसका कोई मतलब नहीं समझ में आता है। अच्छा होता यदि मजदूर दिवस में इन मजदूरों को अपने घरों तक जाने के लिए वाहनों की व्यवस्था हो जाती रास्ते में खाने-पीने की भी बराबर व्यवस्था बनी रहती तो निश्चित रूप से वह लोग मजदूर दिवस का अर्थ समझ पाते इस संबंध में आगरा से बिहार पैदल जा रहे एक मजदूर राम भजन से बात की गई तो उसने अपनी पीड़ा बयां करते हुए कहा बाबूजी मजदूर दिवस का होता है हम तो मजदूर हैं यह का होता है खाने पीने को रास्ते में ठीक से मिला नहीं पीने का पानी मिला नहीं पैदल चल रहे हैं पांव में छाले पड़ गए हैं ऐसे में मजदूर दिवस का का मतलब है बस हमको साधनों से घर तक पहुंचा दो थोड़ा बहुत खाने को दे दो बस यही मन लगा हुआ है और कुछ अच्छा नहीं लगता


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