अधिवक्ता विजय विक्रम सिंह लखनऊ हाईकोर्ट
क्या है नागरिकता संशोधन कानून 2019?
नागरिकता संशोधन कानून 2019 में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और क्रिस्चन धर्मों के प्रवासियों के लिए नागरिकता के नियम को आसान बनाया गया है, क्या सरकार के पास यह अधिकार होता है कि नागरिकता अधिनियम में संशोधन कर सके?
संविधान के भाग 2, अनुच्छेद 11 में यह प्रावधान है कि संसद नागरिकता के संबंध में नियम बना सकती है!
नागरिकता अधिनियम संशोधन 2019 के मुख्य बिन्दु...
* पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हुए
* हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म को मानने वाले अल्पसंख्यक
* 11 साल की जगह 5 वर्ष बिताने पर ही भारत की नागरिकता
* 31 दिसंबर 2014 से पूर्व भारत में निवास करने वाले
* बिना वैध दस्तावेजों के आने पर भी नागरिकता प्राप्त करने के लिए सक्षम बनाता है!
इस संशोधन में..
* छठी सूची में शामिल राज्यों को इसमें नहीं रखा जाएगा
(असम, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम)
* Inner line Permit(ILP) 1873
(आंध्र प्रदेश ,मणिपुर ,नागालैंड) में भी लागू नहीं होगा.
नागरिक संशोधन अधिनियम 2019
इस संशोधन का संपूर्ण देश में बड़े पैमाने पर विरोध हुआ
सबसे अधिक विरोध पूर्वोत्तर भारत में हुआ
असम के लोगों का विरोध का कारण यह है कि
असम समझौता 1985 के अनुसार जो ऐसे व्यक्ति हैं जो 25 मार्च 1971 के बाद असम में आए हैं उन्हें असम से निकाला जाएगा और असमिया संस्कृत , असमिया साहित्य और भाषा के लिए सरकार कमेटी बनाकर इसका संरक्षण करेगी, इस संरक्षण के लिए हमेशा प्रयास करती रहेगी!
असम वालों का मानना है की इस संशोधन से असम समझौता का उल्लंघन किया जा रहा है, असम में लगभग 19 लाख लोगों को अवैध प्रवासी पाया गया है जिन्हें असम से निकालने के विपरीत उन्हें इस संशोधन के तहत नागरिक बनाया जा रहा है
वहीं दूसरी तरफ सरकार का यह तर्क है की
इस संशोधन में..
छठी सूची में शामिल राज्यों पर (असम, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम) और
Inner line Permit(ILP) 1873
(आंध्र प्रदेश ,मणिपुर ,नागालैंड) पर लागू ही नहीं होगा.
भारत में मुस्लिम भाइयों के द्वारा विरोध का कारण -
मुस्लिमों का कहना है कि आपने इस संशोधन में तीनों देश से आए लोगों में मुस्लिम एवं अन्य धर्मों को क्यों नहीं शामिल किया?
इन 3 देशों के अलावा भी जो पड़ोसी देश है उन देशों के लोगों को आप क्यों नहीं शामिल करना चाहते हैं?
बांग्लादेश में मुस्लिमों के साथ भी अत्याचार हो रहा है, श्रीलंका में तमिल भाइयों के साथ अत्याचार हो रहा है,
पाकिस्तान में अहमदिया मुस्लिम और शिया मुस्लिम भाइयों के साथ भी अत्याचार हो रहा है, इनको क्यों नहीं शामिल किया गया . रोहिंग्या मुस्लिम को म्यांमार में, बुद्धिस्ट को तिब्बत में, धार्मिक के आधार पर प्रताड़ित किया जा रहा है.
इन लोगों को सरकार क्यों नहीं शामिल कर रही है?
इस पर सरकार का तर्क है
कि- पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान एक धार्मिक देश है, जिसका धर्म मुस्लिम है. जिससे मुस्लिम को छोड़कर अन्य धर्मों को प्रताड़ित किया जा रहा है!
उपरोक्त देशों में हिंदुओं के साथ अत्यधिक अत्याचार हो रहे हैं
एक सर्वे के अनुसार वर्ष 1951 में पाकिस्तान में हिंदुओं की जनसंख्या 12. 9%थी वर्तमान में घटकर 1.6% तक हो गयी है वहीं बांग्लादेश मैं 1951 में 22% हिंदू थे जो अब 8.5% रह गए हैं इतनी तेजी से हिंदुओं की संख्या घटने का कारण वहां पर हो रहे अत्याचार है
इन में से अधिकतर भारत में आकर बस गए हैं नैतिकता के आधार पर इन लोगों को शरण देना आवश्यक है
विरोध का एक तर्क यह भी है कि -
यह संशोधन ही असंवैधानिक है क्योंकि यह संशोधन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन करता है..
आइए जानते हैं भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 क्या कहता है- अनुच्छेद 14 हमे विधि के समक्ष समता का अधिकार प्रदान करता है अनुच्छेद 14 में कहा गया है कि राज्य, भारत के राज्यक्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा. विरोध करने वाले लोगों का मानना है कि उपरोक्त संशोधन में राज्य के द्वारा जाति के आधार पर विधियों में भेदभाव किया गया है इसलिए लिए यह संशोधन असंवैधानिक है.
इस पर सरकार का तर्क है कि - अनुच्छेद 14 में विधियों का समान संरक्षण में साफ तौर पर कहता है कि राज्य जो है सकारात्मक तरीकों से भेदभाव के लिए नियम बना सकती है.
क्योंकि सभी के लिए विधियां समान नहीं हो सकता है सकारात्मक भेदभाव के लिए अनुच्छेद 14 हमें नहीं रोकता है इस प्रकार इसका हनन नहीं हुआ है!
कुछ लोगों का कहना है कि यह संशोधन अनुच्छेद 15 का उल्लंघन करता है-
अनुच्छेद 15 क्या कहता है आइए जानते हैं
अनुच्छेद 15 के अनुसार भारत में किसी भी नागरिक के साथ धर्म, जात, लिंग, मूलवंश और जन्म- स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा!
इस पर सरकार का तर्क है कि
हम तो अपने नागरिकों के साथ भेदभाव कर ही नहीं रहे हैं तो कैसे अनुच्छेद 15 का उल्लंघन हुआ है
विरोध का दूसरा तत्व यह भी है कि हमारा राष्ट्र 'पंथनिरपेक्ष' है और यह विधेयक हमारे पंथनिरपेक्ष को कहीं ना कहीं कमजोर कर रहा है
इस पर सरकार का तर्क है कि हम सभी 'धर्मनिरपेक्ष' राष्ट्र हैं
हम सभी धर्म की बात कर रहे हैं किसी भी धर्म के लोगों को नागरिकता देने के प्रावधान जो संशोधन से पूर्व था उसमें किसी भी प्रकार का बदलाव नहीं किया गया है
अन्य सभी देशों के सभी धर्म के लोग पूर्व के प्रावधानों को पूर्ण करते हुए नागरिकता ले सकते हैं.
यहां पर केवल तीनों देशों में (पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान) में धार्मिक उत्पीड़ित के लोगों के लिए भारत में रियायत दी जा रही है
अब इसका निर्णय माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लिया जाना है क्या वाकई में 'धर्मनिरपेक्षता' या अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन हुआ है और माननीय उच्चतम न्यायालय ही 'सकारात्मक' की भावना की व्याख्या करेगा. इसके बाद ही यह निर्णय होगा क्या यह विधेयक संवैधानिक है कि नहीं.....
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