निस्क्रांत संपत्ति झाऊपुर प्रकरण की शिकायत मुख्यमंत्री से
खेल पर खेल में सवालों के घेरे में तहसील प्रशासन की भूमिका
पहले नीलामी फ़िर वरासत और अब भू माफियाओ ने अवशेष सरकारी जमीन पर शुरु की प्लाटिंग
फतेहपुर। आजादी के समय हुए बटवारे में देश छोड़कर जाने वाले मोहम्मद अहमद एवं इफ्तखार अहमद की स्थानीय अचल संपत्ति पर वैसे तो हमेशा से बहुतों की नज़र लगी थीं किन्तु सिस्टम से मिलकर पहला खेल 1975 में ज़रिए नीलामी हुआ। उसके बाद अवशेष ज़मीन का 2015 में वरासत की कार्यवाई ने प्रशासनिक जिम्मेदारों की भूमिका पर सवाल खड़े कर दिए। इस सन्दर्भ में मुख्यमंत्री को भेजे गए एक शिकायती पत्र में न सिर्फ़ कई गंभीर आरोप लगाये गए है, बल्कि ऐसे मामलो की शासन स्तर से उच्च स्तरीय जांच करवाने की मांग की गई है।
उपलब्ध जानकारी के अनुसार बटवारे के शहर क्षेत्र के निवासी मोहम्मद अहमद एवं इफ्तखार अहमद स्वेच्छा से पाकिस्तान चले गए थे, क्योंकि दोनो दुश्मन देश गए थे, इसलिए उनकी समूची चल अचल सम्पत्ति सरकार के कब्जे में चली गई, किन्तु पहले गलत तरीके से नीलामी और फ़िर वरासत के तहत् स्वामित्व का हस्तांतरण जिन परिस्थितियों में हुआ वह अपने आप में कई सवाल खड़े करता है। इस मामले में फतेहपुर सदर के तत्कालीन एसडीएम विवेक श्रीवास्तव एवं तहसीलदार रहे मोती लाल यादव के साथ साथ तीन लेखपालों की भूमिका अत्यन्त संदिग्ध बताई जा रही है।इस शिकायती पत्र में योजित रणनीति के तहत जब तत्कालीन तहसीलदार सदर मोती लाल यादव ने वरासत की प्रक्रिया पूर्ण करने में हीला हवाली की तो शाह हुसैन ने तत्कालीन उप जिलाधिकारी विवेक श्रीवास्तव की अदालत में प्रकरण स्थानांतरित करने के लिए प्रत्यावेदन दिया, जिसे उप जिलाधिकारी ने स्वीकार करते हुए पत्रावली तलब कर ली और प्रकरण की पत्रावली न्यायिक तहसीलदार सदर रामस्वरूप की अदालत में स्थानांतरित करने का आदेश दिया। न्यायिक तहसीलदार ने 10 अक्टूबर 2015 को वरासत का आदेश देते हुए अत्यंत संदिग्ध परिस्थितियों में बड़े भूखंड का स्वामित्व सा हुसैन को सौंप दिया।
बताते चलें कि शाह हुसैन ने पत्रावली में खेल करते हुए खाता संख्या 00127 की गाटा संख्या 74 का उल्लेख किया। इस गाटा संख्या में वरासत का आदेश कराने के बाद भू खण्ड के उसी खाता संख्या की दूसरी गाटा संख्या 203 को दाखिल किया, जिसका आदेश 23 दिसम्बर 2017 को जारी हुआ। ग़ौरतलब है कि इन दोनों गाटा संख्या में तत्कालीन लेखपाल नरपत सिंह ने 60 (ख़) के दस्तावेज़ शाह हुसैन के पक्ष में जारी कर दिया। बाद में शाह हुसैन ने 60 (ख़) के अनुसार वरासत की कार्यवाई पूर्ण करवाई। बाद में इस कीमती भूखण्ड को शाह हुसैन ने राजा राम व अर्जुन पुत्र गण रामाधीन उर्फ़ रामधनी निवासी राधा नगर (फतेहपुर) को बेच दिया।
गाटा संख्या 203 के वरासत का मुक़दमा शाह हुसैन के पक्ष में होने के बाद उसने शहर के तुराब अली का पुरवा (सईद गार्डेन कालोनी) निवासी मो. अलीम खा पुत्र मो. हासिम खा को बेच दिया। अलीम ने 09 नवम्बर 2017 को दाखिल ख़ारिज भी करवा लिया।
यहां पर यह भी गौरतलब है कि गाटा संख्या 74 एवं 203 के आधे हिस्से के मालिक इफ्तेखार अहमद की निस्क्रांत सम्पत्ति के रुप में दर्ज़ है, वह दस्तावेजों में तो सरकारी है किन्तु खेल कुछ ऐसा सजाया गया है कि शाह हुसैन के स्वामित्व वाली ज़मीन के दस्तावेजों की आड मे इस भूखण्ड को भी बेचने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। यहां पर सवाल यह उठता है कि सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सरकारी जमीनों की सुरक्षा के बाबत सख्त तो है और कड़े आदेश भी जारी हुए है, किन्तु जिला एवं तहसील प्रशासन इस मद में कतई गंभीर नहीं है और तेज़ी से भू माफिया ऐसी जमीनों को ठिकाने लगाने में जुटे हुए हैं।
शिकायती पत्र में मुख्यमंत्री से त्वरित कार्यवाही एवं शासन स्तर से इस समूचे प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच करवाने की मांग की गई है। इस सन्दर्भ में राजस्व विभाग के अधिकारी मौन है और ऐन केन प्रकारें मामले को दबाने की जुगत भिड़ा रहें हैं।