यूपी में कांग्रेस भी खेलेगी 'ब्राह्मण कार्ड', सीएम चेहरे के लिए मंथन शुरू
लखनऊ। विधानसभा चुनाव में भले ही अभी छह माह से ज्यादा का समय है, लेकिन प्रदेश में राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं. इस बार सत्ता के केंद्र बिंदु में सभी पार्टियां ब्राह्मणों को रख रही हैं. अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी परशुराम की मूर्ति स्थापित करके ब्राह्मणों को आकर्षित करने की जुगत में जुटी है, तो बहुजन समाज पार्टी फिर से ब्राह्मण सम्मेलन का प्लान कर रही है. जबकि भारतीय जनता पार्टी को पहले से ही ब्राह्मणों के झुकाव वाली पार्टी माना जाता रहा है. अब इन्हीं पार्टियों के नक्शेकदम पर कांग्रेस पार्टी भी चल पड़ी है. पार्टी का प्लान है कि उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री का चेहरा ब्राह्मण रखा जाए, जिससे कभी कांग्रेस के हितैषी रहे ब्राह्मण वापस लौट आएं. बता दें कि कांग्रेस पार्टी का इतिहास रहा है कि अब तक इस पार्टी ने उत्तर प्रदेश को 6 ब्राह्मण मुख्यमंत्री दिए हैं, जो किसी भी पार्टी में सबसे ज्यादा हैं.
*कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों का कार्यकाल*...
गोविंद वल्लभ पंतः 26 जनवरी 1950 से 27 दिसंबर 1954.
संपूर्णानंदः 28 दिसंबर 1954 से 6 दिसंबर 1960.
चंद्रभानु गुप्ताः 7 दिसंबर 1960 से 1 अक्टूबर 1963..
चंद्रभानु गुप्ताः 26 फरवरी 1969 से 17 फरवरी 1970..
त्रिभुवन नारायण सिंहः 18 अक्टूबर 1970 से 3 अप्रैल 1971..
कमलापति त्रिपाठीः 4 अप्रैल 1971 से 12 जून 1973..
नारायण दत्त तिवारीः 21 जनवरी 1976 से 30 अप्रैल 1977..
नारायण दत्त तिवारीः 3 अगस्त 1984 से 24 सितंबर 1985..
वीर बहादुर सिंहः से 24 सितंबर 1985 से 24 जून 1988..
नारायण दत्त तिवारीः 25 जून 1985 से 5 दिसंबर 1989..
*क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक*.....
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक रत्नमणि लाल कहते हैं कि प्रमोद तिवारी कांग्रेस के बहुत पुराने और बड़े मजबूत नेताओं में रहे हैं. यह शिकायत तो उनकी ओर से तो डायरेक्टली नहीं, लेकिन पार्टी में माना जाता है कि उन्हें जो महत्व मिलना चाहिए था, वह नहीं मिलता. इस बात को लेकर पार्टी के कार्यकर्ता और समर्थक दबी जुबान से कहते हैं. अब समय आ गया है कि इस तरह के नेताओं का जो महत्व है, उसे आंकने का और चुनावी मैदान में देखने और समझने का मौका देना चाहिए. 5 साल में एक बार ये समय आता है. अगर यह मौका आ रहा है न केवल उन्हें एक ब्राह्मण नेता के रूप में पहचानने का टाइम है बल्कि पार्टी के पास ब्राह्मणों को अपने साथ जोड़ने का एक अच्छा अवसर है. पार्टी को पुराने ब्राह्मण नेता को पेश करना चाहिए. इससे इस वर्ग के लोग भी पार्टी के साथ जुड़ेंगे. क्योंकि इस वर्ग का जुड़ना किसी भी पार्टी के लिए बहुत मजबूत रणनीति का हिस्सा रहा है और आगे अगर कांग्रेसी भी ये करती है तो उसके लिए भी बेहतर होगा।