नीरज चोपड़ा ने वजन कम करने के लिए शुरू किया था खेलना, अब ओलंपिक में गाड़ दिया झंडा।
टोक्यो ओलंपिक।इसी साल मार्च में स्टार जैवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा ने पटियाला के नेता जी सुभाष राष्ट्रीय खेल संस्थान (एनआईएस) में आयोजित इंडियन ग्रैंड प्रिक्स में नया नेशनल रिकार्ड स्थापित किया था। बुधवार को उन्होंने उसी बेहतरीन प्रदर्शन को टोक्यो ओलंपिक में दोहराया। नीरज चोपड़ा ने अपने पहले ही प्रयास में शानदार थ्रो किया और 86.65 मीटर दूर भाला फेंका। इसके साथ ही वह फाइनल के लिए क्वालीफाई कर गए। फाइनल में सीधे प्रवेश करने के लिए 83.50 मीटर का थ्रो होना जरूरी है। नीरज अब 7 अगस्त को फाइनल मुकाबले में अपना दमखम दिखाएंगे। पुरुष भाला फेंक के क्वालीफिकेशन राउंड में नीरज चोपड़ा ग्रुप में पहले स्थान पर रहे।
हरियाणा के पानीपत के रहने वाले नीरज किसान परिवार से आते हैं। कोरोना के कारण करीब एक साल से ज्यादा की अवधि से प्रतिस्पर्धाओं से चोपड़ा दूर रहे, लेकिन मार्च में वापसी करते ही उन्होंने शानदार प्रदर्शन करते हुए 88.07 मीटर का थ्रो करके नया नेशनल रिकॉर्ड बना दिया था। नीरज ने अपने ही पिछले नेशनल रिकार्ड को एक सेंटीमीटर से तोड़ दिया। नीरज चोपड़ा ने कहा कि कोरोना महामारी ने ट्रेनिंग की तैयारियों को काफी प्रभावित किया, लेकिन उन्होंने अपनी ट्रेनिंग को प्रभावित नहीं होने दिया। मेहनत से तैयारी की।
नीरज के कोच जितेंद्र ने बताया कि शिवाजी स्टेडियम में जब पहली बार नीरज चोपड़ा को उसके चाचा सुरेंद्र चोपड़ा लेकर आए तो लगभग छह महीने तक वजन कम करने से लेकर फिट होने तक नीरज से सभी खेल खिलवाए गए। नीरज दौड़ने में काफी धीमा निकला, लंबी छलांग, ऊंची छलांग समेत अन्य खेल करवाने के बाद जब उसके हाथ में पहली बार बांस का भाला दिया तो कुछ गजब हुआ। नीरज ने पहली ही बार में 25 मीटर से दूर भाला फेंक दिया। तभी समझ में आ गया था कि नीरज इसी खेल के लिए बना है। कोच जितेंद्र ने बताया कि नीरज के चाचा भीम और सुरेंद्र ने हमेशा नीरज के खेल को बढ़ावा दिया।
नीरज का ओलंपिक में खेलने का सपना हमेशा बरकरार रहा। यह सिर्फ सपना ही नहीं नीरज चोपड़ा के लिए एक जुनून था। कोच ने बताया कि नीरज ने चाहे कितनी चैंपियनशिप जीतीं, लेकिन उनका मुख्य उद्देश्य हमेशा ओलंपिक ही रहा। 10 साल के उतार-चढ़ाव के बाद लोगों का उद्देश्य बदल जाता है, लेकिन नीरज का उद्देश्य 10 साल बाद भी बरकरार रहा, यही एक अच्छे खिलाड़ी की पहचान है।
पानीपत के शिवाजी स्टेडियम का मैदान समतल न होने और घास में सही से अभ्यास न होने पर नीरज के साथ ट्रेनिंग करने वाले जयबीर ढौंचक उर्फ मोनू उनको अपने साथ यमुनानगर स्टेडियम में ले जाने लगे थे। जहां उनको अच्छे मैदान की सुविधा मिली। साथी जयबीर के साथ नीरज ने भाला फेंकने की तकनीक पर काम किया। मोनू इस समय पटियाला में नेशनल खिलाड़ियों को ट्रेनिंग दे रहे हैं।
उछलकर भाला फेंकना भी जल्दी सीख गया था नीरज
उछलकर भाला फेंकने की तकनीक भी नीरज ने शिवाजी स्टेडियम में रहकर ही सीखी थी। जहां शुरुआत में उनको फिट रखने के साथ उनके शरीर को लचीला भी बनाया गया। जिससे वह उछलकर हाथों के साथ पैरों का भी सही प्रयोग करके ज्यादा दूर भाला फेंक पाते थे। नीरज की खास बात है कि वह कभी हारने के बारे में नहीं सोचते।