"मेंरा जीवन "
यूं राहों की भटकन सिखाओ नहीं
,
उसूलों के कागज़ गलाओ नहीं ।
क्या करूँगी मैं पाकर प्रसिद्धि को,
मुझे अब मेरे हाल में रहने दो ।
ये जन्मों का नाता निभायेंगे हम,
स्नेहके रूप को भी दिखायेंगे हम।
प्रेम को नित ह्रदय रस में पगने दो,
मुझे अब मेरे हाल में रहने दो ।
मैने झेला है राहों की कठिनाईयां ,
मैने देखा पिता की भी कुर्बानियाँ l
क्या करूँगी मैं पाकरके सम्मान को?
मुझे अब मेरे हाल में रहने दो ।
जो बातें ; किताबी पढ़ी थी कभी,
उसूलों की पंक्ति गढ़ी थी कभी ।
उन्हें आत्मसात तो करने दो,
मुझे अब मेरे हाल में रहने दो ।
समझा है रिश्तों की पैनी नज़र,
मैने जाना है भावों की भी डगर ।
दिखावे से दूर मुझे रहने दो ।
मुझे अब मेरे हाल मे रहने दो।
चकाचौंध जग की लुभायेंगी क्या ?
सीख सच्चाई की दे पायेंगी क्या?
मेरे भावों को संत बन जाने दो,
मुझे अब मेरे हाल मे रहने दो ।
नहीं चाह कि नाम मेरा भी हो,
नहीं चाह कि ताजपोशी भी हो ।
मुझे तो मेरे धुन मे ही सजने दो,
मुझे अब मेरे हाल मे रहने दो ।
उसूलों को मेरे डिगाओ नहीं,
भाव सिद्धांतों के मिटाओ नहीं ।
खुद्दारी मुझमें पनपने दो,
मुझे अब मेरे हाल मे रहने दो ।
रश्मि पाण्डेय बिन्दकी, फतेहपुर