"हमारी हिंदी"
भावों की भाषा को कहना सिखाती,
ख़ुद को भी ख़ुद से मिलना सिखाती l
हमें धैर्य से आगे बढ़ना सिखातीl,
ये हिंदी हमें मिल के रहना सिखाती l
कभी वंशी की धुन में रस घोल देती,
कभी तो ये जीवन को संगीत देती l
कभी तो प्रकृति के भी संग मिलके,
जीवन को बहुमुल्य उपहार देती l
हमारे ह्रदय में नवों रस मिलाकर,
हमें रस समन्वित कविताएँ देती l
ये हिंदी हमारी हमें मान देकर,
जग में हमें गौरवान्वित भी करती l
अम्बर औ धरती का विस्तार देती,
हमें मातृभूमि पे मिटना सिखाती l
हमें निज गौरव का मान देकर,
ये हिंदी हमें मान देना सिखाती l
मिटा कर सभी भेद मन का हमारे,
ह्रदय, प्रेम रस का सिंचन कराती l
ये हिंदी हमें भाव गहराई देकर,
हमें सिंधु- सरिता सम है मिलाती l
कभी तो क्षितिज के भी पार जाकर,
धरती- अम्बर मिलन भी कराती l
हमें भाव सरिता में बहना सिखाती,
ये हिंदी हमें एक रहना सिखाती l
रश्मि पाण्डेय
बिंदकी, फतेहपुर