"ख़ोज"
शून्य आकाश से लेके धरती तलक,
ख़ोज तेरी सदा से ही करते रहे l
भाव की वेदना , मन की संवेदना,
दूर होके भी तुमको बताते रहे l
मन के हर पीर को और नयन नूर को,
रस से सिंचित हो कविता सजाते रहे l
वक्त संघात से , रिश्तों के घात से,
हम हमेशा से ख़ुद को बचाते रहे l
शून्य आकाश से लेके धरती तलक,
ख़ोज तेरी सदा से ही करते रहे l
हिय की संजीदगी को ही पढ़के सतत्,
मन की पाती तुम्हें हम सुनाते रहें l
कर समन्वित भावों की निजता को,
नाम तेरे ही कविता को गढ़ते रहे l
मूक अधरों के गीतोँ की धुन में सतत्,
प्रेम की वंशी हम नित बजाते रहे l
शून्य आकाश से लेके धरती तलक.
ख़ोज तेरी सदा से ही करते रहे l
रश्मि पाण्डेय
बिंदकी, फतेहपुर
9452663203