भू- माफियाओं के इशारे पर नाच रहा प्रशासनिक सिस्टम, सरकारी दस्तावेजों से एक और पूर्व कलेक्टर का आदेश हुआ गायब
ग्राम सभा भरहरा व झलहा की ४६ बीघे सरकारी जमीन का मामला, हाईकोर्ट से स्टे बैकेट होने के बावजूद धड़ल्ले से हों रहे हैं बैनामे
तत्कालीन डीएम जितेन्द्र कुमार के १८ साल पुराने आदेश का नहीं हुआ क्रियान्वयन
तीन साल से कानूनी जीत को फाइलों में दबाये बैठे है प्रशासनिक जिम्मेदार
फतेहपुर। क्या इस तथ्य पर आसानी से विश्वास किया जा सकता है कि जनपद की सरकारी मशीनरी भू- माफियाओं के इशारे पर काम कर रही है और दर्जनों बीघे सरकारी ज़मीन पर अवैध कब्जेदारो की बेदखली से संबंधित यहां के पूर्व कलेक्टर जितेन्द्र कुमार का एक महत्वपूर्ण आदेश सरकारी अभिलेखो से गायब हो चुका है! इतना ही नहीं इस आदेश पर उच्च न्यायालय इलाहाबाद से लिया गया स्टे ऑर्डर को बैकेट हुए तीन वर्ष से अधिक का समय गुज़र चुका है, किन्तु उसके अनुपालन की फ़िक्र किसी को नहीं है। या यू कहे कि इस अंधेर गर्दी के लिए काफ़ी हद तक सरकारी सिस्टम जिम्मेदार है...! यहां पर यह कहना कतई ग़लत न होगा कि सत्ता के अलंबरदारों के संरक्षण वाले भू-माफियाओं ने नगर पालिका परिषद (फतेहपुर) एवं गैर आबाद ग्राम सभा भरहरा व झलहा की लगभग ४६ बीघे सरकारी जमीन को या तो बेच खाया है या फ़िर अवशेष ज़मीन पर बलात कब्ज़ा कर रखा है, जिन पर योगी के नौकशाह हाथ डालने से कतराते रहे हैं।
गौरतलब है कि लगभग सत्रह वर्ष पूर्व किये गये डीएम एक चर्चित आदेश पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा निर्गत स्थगनादेश के बैकेट हो जाने के बाद गेंद एक बार फिर प्रशासन के पाले में आ गई है! देखने वाली बात यह है कि अवैध कब्जेदारो से इस सरकारी जमीन को मुक्त कराने के बाबत योगी का तन्त्र कितना सफल होता है! फिलहाल इस जीत को प्रशासन फाइलों में दबाये बैठा है! इसमें बंजर, पशुचर, चरागाह, तालाब व ग्राम सभा की जमीने शामिल है, जिसे १९५८ के पूर्व की चकबंदी में घालमेल करके दर्जनभर के करीब अलग-अलग लोगों के नाम दर्ज कर दिया गया था। जिसका मुकदमा डीडीसी के यहाँ २३ वर्ष तक चला, जिसे २००२ में विराम दिया गया। उल्लेखनीय है कि तत्कालीन कलेक्टर (डीएम) जिला उपसंचालक चकबंदी जितेंद्र कुमार ने २३ सितम्बर २००२ को विविध वाद संख्या- ३/२००१- २००२ धारा ४८ (३) उ० प्र० जोत चक०अधि० मौजा-भरहरा, परगना व तहसील व जिला फतेहपुर, सरकार बनाम बिटानी देवी पत्नी राम स्वरूप आदि में किये गये आदेश का मजमून कुछ इस तरह है। पैरा नं० १-ग्राम भरहरा के जोत चकबंदी आकार पत्र २३ के गाटा संख्या-१०३ क्षेत्रफल ०.७१९ हे० में अंकित श्रीमती बिट्टन देवी पत्नी राम स्वरूप नि० सिविल लाइन फतेहपुर का नाम पृथक करके गाँव सभा बंजर खाते में दर्ज किया जावे। इसी प्रकार ग्राम भरहरा के जोत चकबंदी आकार पत्र २३ के गाटा संख्या १०३ क्षेत्रफल ०-१२-१.१/४ व गाटा संख्या १०६ क्षेत्रफल १-१२-२ से सुन्दर लाल पुत्र ईश्वरदीन निवासी ग्राम झलहा हाल मो० आबूनगर, फतेहपुर का नाम प्रथक करके गाँव सभा बंजर खाते में अंकित करने के आदेश हुए थे। इसी प्रकार ग्राम भरहरा के जोत चकबंदी आकार पत्र-२३ के गाटा संख्या-१९५ क्षेत्रफल ०.०९७१ हे० में अंकित अनन्तराम पुत्र लालाराम निवासी मोहल्ला मसवानी, शहर फतेहपुर व भगवानदीन पुत्र राम गुलाम निवासी महारथी शहर फतेहपुर का नाम प्रथक करके गाँव सभा बंजर खाते में अंकित करने का भी आदेश हुआ था। ग्राम सभा भरहरा की जोत चकबंदी आकार पत्र-२३ के गाटा संख्या १७७ क्षेत्रफल ३-११-० में अंकित अभिमन्यु सिंह पुत्र अर्जुन सिंह निवासी ओती का नाम खारिज करके ग्राम सभा के पशुचर खाते में अंकित करने, ग्राम सभा भरहरा की जोत चकबंदी आकार जोत चकबंदी आकार पत्र-२३ के गाटा संख्या-७९ क्षेत्रफल ०.३८०४ हे० में अंकित श्रीमती मिथिलेश देवी पत्नी अमरनाथ निवासी आबूनगर, फतेहपुर का नाम प्रथक करके ग्राम सभा पशुचर खाते में अंकित करने, गाटा संख्या-२२५ क्षेत्रफल ०.२४२८ हे० में अंकित अनन्तराम पुत्र लालाराम व भगवानदीन पुत्र रामगुलाम निवासी मसवानी, फतेहपुर का नाम हटाकर ग्राम सभा चरागाह में अंकित करने, गाटा संख्या-९८ क्षेत्रफल ०.२५०८ हे० में अंकित श्रीमती बिट्टो देवी पत्नी राम स्वरूप निवासी सिविल लाइन, फतेहपुर का नाम अंकित करके ग्राम सभा चारागाह के खाते में अंकित करने का आदेश हुआ था। इसी क्रम में उपरोक्त ग्राम सभा का गाटा संख्या-२३१ क्षेत्रफल ०.५८०० में अंकित श्रीमती मिथलेश देवी पत्नी अमरनाथ निवासी आबूनगर का नाम खारिज कर तालाब अंकित करने एवं उक्त ग्राम सभा के गाटा संख्या १६७ क्षेत्रफल २-१५-१७.५ व गाटा संख्या-१६८ क्षेत्रफल ०-१२-४.५ में अंकित सुन्दर लाल पुत्र ईश्वरदीन निवासी ग्राम झलहा हाल मो० आबूनगर का नाम काटकर इस जमीन को ग्राम सभा के खाते में अंकित करने के स्पष्ट आदेश दिये गये थे।तत्कालीन डीएम द्वारा विगत २३ सितम्बर २००२ को जिला उपसंचालक चकबंदी की हैसियत से कड़ा आदेश तो कर दिया किन्तु उनके मातहतो ने इस आदेश के अनुपालन की दिशा में बिलकुल भी गम्भीरता नहीं दिखाई। या यूँ कहे कि राजस्व विभाग ने दूसरे पक्ष को उच्च न्यायालय जाने का भरपूर अवसर दिया! नतीजतन इसरत अली पुत्र अहमद अली नि० बाकरगंज, फतेहपुर ने उच्च न्यायालय इलाहाबाद में इस आदेश को चुनौती दी, जिस पर हाईकोर्ट ने १९ दिसम्बर २००२ को इस आदेश के क्रियान्वयन पर तीस दिन के लिये रोक लगाते हुए दो माह के अंदर ग्राम सभा भरहरा ब्लाॅक तेलियानी जनपद फतेहपुर जरिये ग्राम प्रधान काउण्टर एफीडेविट व रिजाइंडर लगाने के आदेश दिये किन्तु इसी बीच डीएम जितेंद्र कुमार का तबादला हो जाने के कारण उच्च न्यायालय में आशातीत पैरवी न होने से यह स्थगनादेश लगभग १५ वर्षों तक सरकारी दस्तावेजो में आधार बना रहा। सूत्रों की माने तो इस दौरान उपरोक्त जमीनो के अवैध कब्जेदारो ने सिस्टम की लचरता का फायदा उठाकर ज्यादातर बेच डाली। जिनमे अधिकांश में निर्माण भी हो गये है। रिहायशी विभाग ने कईयों के बाकायदे नक्शे भी पास कर दिये। इसी बीच विगत १३ दिसम्बर २०१७ को उच्च न्यायालय के जज विवेक कुमार बिरला की कोर्ट ने उपरोक्त रिट याचिका नम्बर ५४६०० वर्ष २००२ को मूल रूप से खारिज कर दिया और यहाँ के कलेक्टर व डीडीसी को आदेश की प्रति भी भेज दी किन्तु करीब तीन वर्ष के बाद भी व्यवस्था पालको ने जमीन खाली कराने की दिशा में एक भी कदम आगे नहीं बढ़ाया है। इतना ही नहीं तत्कालीन डीएम जितेन्द्र कुमार के इस मद में २३ सितम्बर २००२ के आदेश का अभी तक लेशमात्र भी अनुपालन नहीं हुआ है, जो खस्ताहाल सिस्टम की अजब कहानी को बया करता है। इसमें बंजर, पशुचर, चरागाह, तालाब व ग्राम सभा की जमीने शामिल है।समूचे प्रकरण की अजब कहानी उपरोक्त मामले में प्रकाश में आया कि तत्कालीन डीएम जितेन्द्र कुमार के आदेश से प्रभावितो में इसरत अली नाम का कोई भी खातेदार नहीं था, बावजूद इसके इसरत अली ने हाईकोर्ट में आदेश को चुनौती दी। आदेश पर स्टे की मियाद ३० दिन थी, किन्तु राजस्व विभाग के अधिकारियों द्वारा सलीके से पैरवी नहीं की जिससे १५ वर्षों तक मामला कानूनी पचड़े में पड़ा रहा। इस दौरान लगभग सारी जमीन बिक गई और ज्यादातर में निर्माण भी हो गया। इतना ही नहीं डेढ़ वर्ष से अधिक का समय स्टे बैकेट हुए हो गया लेकिन प्रशासन ने इस सरकारी जमीन को खाली कराने की दिशा में कोई कारगर कदम नहीं उठाया। बड़ी बात तो यह भी है कि पूर्व डीएम आँजनेय कुमार सिंह के अतिक्रमण हटाओ महामिशन से भी इस आदेश को बड़ी ही चालाकी से बचाया गया और मौजूदा डीएम तक भी इस मामले की पत्रावली को नहीं पहुँचने दिया गया। इस मामले में कई पूर्व व मौजूदा प्रशासनिक अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों की ओर भी उँगलिया उठना लाजिमी है। मौजूदा उपजिला अधिकारी व तहसीलदार सदर की भूमिका पर भी सवाल उठाएजातेरहेहैं। गौरतलब है कि यह हैरतअंगेज मामला मोदी सरकार की ग्रामीण विकास राज्य मन्त्री निरंजन ज्योति के निर्वाचन क्षेत्र से जुड़ा है, जो प्रायः सरकारी जमीनो के मामले में गम्भीर होने का दंभ भरती रहीं है। उपरोक्त मसले पर जब सम्बन्धित अधिकारियों से उनका पक्ष जानने का प्रयास किया गया तो वे उपलब्ध नही हुये।