"कत्ल"
बड़े इल्ज़ाम ले लेकर,
उन्होंने दृढ़ ख़ुद को रखा l
मग़र ईमान ने भी तो,
पकड़ उनको जकड़ रखा l
बड़ी दिलकश अदाओं से,
समय फरियाद करता है l
बड़े ही नाज़ नख़रे से,
समय ने डाला है घेरा l
कभी तो वक़्त ने उम्दा,
शराफ़त ओढ़ के चोला l
कभी तफ्तीश भी करके,
तमन्ना का शहर पाया l
कभी कर कल्पनाओं को,
नयन साकार कर डाला l
कभी नियमों में कर रोज़ा,
रूह आफ़्तार कर डाला l
मुकम्मल इस जहाँ में भी,
नहीं बिन रूह के जीना l
मगर फ़िर भी जहाँ ने कत्ल,
वफ़ा साज़िश में कर डाला l
रश्मि पाण्डेय
बिंदकी, फतेहपुर