"सुकूँ"
लिखकर यूँ ही मन हल्का कर लेती हूँ,
ज़िंदगी ह्रदय से ही महसूस करती हूँ l
बड़ा आश्चर्य होता है देख ज़माने को,
ह्रदयहीनता ही मिली आजमाने को l
कुछ कर नहीं सकती,कह नहीं सकती, बस समझ कर हीथोड़ा मुस्कुरा देती हूँl
लिखकर यूँ ही मन हल्का कर लेती हूँ,
ज़िंदगी ह्रदय से ही महसूस करती हूँ l
शब्द तो अंतर्निहित से हो गयें हैं, अजीब सी कशमकश डेरा डाले हैl
सर्वत्र निर्ममता ही महसूस करती हूँ,
पर ज़िंदगी को ज़िंदगी ही समझती हूँ l
कहाँ है अपनापन ? ढूँढना पड़ता है l
अब तो रिश्तों का व्यापार ही होता हैl
प्रकृति में ही सुकूँ की तलाश करती हूँ ,
ख़ुद को समझने की कोशिश करती हूँl
लिखकर यूँ ही मन हल्का कर लेती हूँ,
ज़िंदगी ह्रदय से ही महसूस करती हूँ l
रश्मि पाण्डेय
बिंदकी, फ़तेहपुर