"भावाभिव्यक्ति
"
जब भी कभी प्रचंड वेदना,
ले उफान है द्रवित हुई l
तब लेकर मानस का पटल,
प्रबल भाव कविता में बही l
नहीं देखता है ये जग,
भावों से मंडित मन को l
अनावृत कैसे कर दें अब,
प्रबल आत्मा के पट को l
कहता हो कर मन ये बोझिल ,
लक्ष्य को करना न तू धूमिल l
नहीं दैन्यता के वश होना,
दुनिया का तो काम है कहना l
माना सतत् तुम्हारा चलना,
सबकी बातों को बस सहना l
होकर अटल, अडिग भी रहना,
मानस की कविता को कहना l
आह्लादित ह्रदय को रखना,
'मुस्कान ए अधर' सजाये रखना l
चरेवेति को प्रबल रखे मन,
ख़ुद को सतत् बढ़ाये रखना l
नहीं देख पाती ये दुनिया,
सात्विक भावों की भी बगिया l
मुरझाई हैं खुशियाँ सारी,
पाखंडों की घिरी बीमारी l
बस भावों की गहराई से,
संग सागर की तराई से l
नहीं जान पाओगे अब तुम,
कीचड़ कमल खिला सा जीवन l
आज वेदना द्रवित हुई,
संग भी संकल्पित ये हुई l
चलो क्षितिज के पार मिलेंगे,
सार्थकता जीवन की कहेंगे l
विवश विचारों की तनहाई,
कविता ने फ़िर ली अंगड़ाई l
हर तरफ़ हताशा ने आ घेरा,
फ़िर भी मनवा लगाए फ़ेरा l
भावों की साकार छवि सी,
चाँद बनी हूँ मैं रजनी की l
रश्मि पाण्डेय
बिंदकी, फ़तेहपुर