वृक्ष लगाओ, नदियों को साफ रखो, भविष्य में इनसे जीवनदान का आधार मिलेगा-सन्त उमाकान्त जी महाराज

 वृक्ष लगाओ, नदियों को साफ रखो, भविष्य में इनसे जीवनदान का आधार मिलेगा-सन्त उमाकान्त जी महाराज



ये जरूरी नहीं कि आपके कर्मों से प्रकृति समझौता कर ले, उसकी सजा से लोग जल्दी बच नहीं पाते


उज्जैन (मध्य प्रदेश)।मनुष्य को सच्चे धर्म, कर्म और प्रकृति के अनुरूप आचरण करने की शिक्षा देने वाले वर्तमान के पूरे समर्थ सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 27 अप्रेल 2021 को उज्जैन आश्रम से दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर प्रसारित संदेश में प्रकृति के महत्त्व को समझाते हुए बताया की नदियों के जल को स्वच्छ रखो, वृक्षों को मत काटो, जंगल को नष्ट मत करो बल्कि वृक्ष लगाओ क्योंकि आगे चलकर ये नदी, वृक्ष ही मनुष्यों के जीवनदान का सहारा बनेगा।


*शहर के पानी का कोई भरोसा नहीं, बिजली चली जाए तो देश की अर्थव्यवस्था चरमरा जायेगी*


नदियों को साफ-सुथरा रखो। नदियों के पानी की जरूरत पड़ेगी। आगे चलकर के नदियों का पानी जीवनदान देने का सहारा बनेगा। इसी को बहुत से लोगों को पीना पड़ेगा। शहर के पानी का कोई ठिकाना नहीं, मिले न मिले, कब बंद हो जाए। यदि बिजली अभी बंद हो जाए, पूरे देश में सारी व्यवस्था खत्म हो जाए। जिन पेड़ों को लगाने के बजाय अभी काट दे रहे हो, उसी पेड़ की जरूरत आपको पड़ने लगेगी। एक पेड़, दो पेड़, चार पेड़ लगा दिया। एसी, पंखा नहीं चलेगा तो उसी पेड़ के नीचे बैठकर आराम तो कर लोगे। जंगलों को काटना ठीक नहीं बल्कि वृक्षों को लगाना है।


*प्रकृति को हरा-भरा करो, वृक्षों को लगाओ ताकि अगली पीढ़ी के भी काम आए*


महाराज जी ने कहा कि चैत्र, वैशाख में धूप बहुत तेज होती है। अब घर से निकलना ही पड़े, शहर-गांव-घर छोड़ना ही पड़े, परिस्थिति ही ऐसी आ जाए तो पेड़ के नीचे कुछ छाया तो मिल जाए, थोड़ा आराम तो मिल जाए। इसलिए प्रेमियों! आपको छोटी-छोटी चीजों पर ध्यान देने की जरूरत है।


*आपसी लड़ाई, झगड़ा, शंका, मनमुटाव तो फिर भी सुलझ सकता है*


महाराज जी ने बताया कि एक देश के राजा और दूसरे देश के राजा के बीच, देखो किसी भी बात का मनमुटाव हो जाता है तो लड़ाई की संभावना बन जाती है। उसी में लड़ाई, जनधन की हानि होती है। लेकिन मनमुटाव, शंका पैदा हो जाती है तो दूर भी हो जाती है। और जमीन जायदाद की, बंटवारे की समस्या सुलझ भी जाती है तो लड़ाई टल जाती है।


*ये जरूरी नहीं कि आपके कर्मों से प्रकृति समझौता कर ले*


लेकिन कुदरत की लड़ाई, प्रकृति की मार होती है, वह जो सजा होती है उससे लोग जल्दी बच नहीं पाते हैं। कोई जरूरी नहीं है कि आप जो कर्म कर रहे हो, उनसे प्रकृति समझौता ही कर ले। इसलिए बड़े ही होशियारी से रहने की जरूरत है। प्रकृति के नियम को तोड़ना, छेड़ना नहीं है।


*प्रकृति के नियम को तोड़ो मत, प्रकृति से छेड़छाड़ मत करो*


महाराज जी ने बताया कि जल, पृथ्वी, अग्नि, वायु और आकाश से इस शरीर की रचना हुई है तो शरीर को इन सबकी जरूरत है। धरती की शुद्धता जरूरी है। गंदी जगह पर आप पैर नहीं रखते, बैठते, उठते, लेटते नहीं हो। ऐसे ही गंदगी जब रहेगी इस धरती के ऊपर, उसकी हवा जब आपको लगेगी तो बीमारी बढ़ेगी। इसलिए इसको साफ सुथरा रखो।


*हाथ जोड़कर विनय हमारी।*

*हो जाओ सब शाकाहारी।।*


जब इस धरती पर ज्यादा खून बहता है, मांस जानवरों का कटता हैं, जानवरों की हिंसा-हत्या ज्यादा होती है, मनुष्य की मृत्यु ज्यादा होती है तो धरती भी गंदी हो जाती है और उससे हवा भी गंदी होती है। जैसे मुर्दा को उठाने वाले नहीं हैं या छोड़ कर के चले गए तो कुत्ते, जानवर खाएंगे जैसा कि इस समय पर कई जगह पर हो रहा है तो उससे टकराकर के जो हवा आएगी, नाक में लगेगी तो वह क्या शुद्ध हवा होगी? वह तो बीमारी पैदा ही करेगी।


*शाकाहारी होने से, जानवरों को न काटने से पर्यावरण दूषित नहीं होगा*


इसलिए इस वायुमंडल को शुद्ध रखना जरूरी है। बराबर हाथ जोड़कर के प्रार्थना लोगों से करता रहा, आज भी कर रहा हूं कि भाई शाकाहारी हो जाओ। सब लोग शाकाहारी जब हो जाओगे, जानवरों को नहीं मारोगे, खाने के लिए नहीं काटोगे तो उनका खून, मांस, खालें, हड्डियां यह सब जमीन पर नहीं पड़ेगी तो हवा, धरती, जल शुद्ध रहेगा। जल में भी इस तरह की गंदी चीजें बहकर नहीं जाएंगी।


*जानवरों के कत्लखानों से बहता खून नदी और पर्यावरण को बहुत अशुद्ध करता है*


बहुतों को नहीं मालूम की जहां जानवर काटे जाते हैं, वहां खून बहता है और वह खून कहां जाता है? नाले से होकर के नदियों में जाता है। तो जल दूषित हो जाता है, खराब हो जाता है। वह तत्व उसने नहीं रह जाते हैं। उदगम के स्थान पर जल में, नदियों में तत्व रहते हैं। इसलिए प्रेमियों! इस समय इन बातों पर विशेष  ध्यान रखने की जरूरत है।

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