गुरुपूर्णिमा"

 " गुरुपूर्णिमा"




पथ के प्रदर्शक तुम ही हो, 

            आधार मेरे जीवन के हो। 

मैं जियूँ मेरे जीवन को ;पर

            हर साँस समर्पित तुमको हो                                          

 क्या दान दक्षिणा दूँ तुमको ? 

              इतनी सामर्थ्य कहाँ मुझमें?                    निःस्वार्थ भाव जीवन को कर, 

               तापस के मानस में होकर। 

हर सीख तुम्हारी ही लेकर ,

        जग शिक्षा दीप से उज्जवल हो।                           बन कर्मवीर  तुम  रहते हो  , 

           पापा  ! तुम मेरे गुरुवर हो। 

  बन वृक्ष अडिग छाया देकर, 

            हर धूप सही तनहा होकर ।                       मन शूल चुभे हैं जितने भी, 

            महसूस भाव हैं उतने ही। 

 सम उच्च हिमालय जैसे हो, 

             पापा! तुम मेरे गुरुवर हो  । 



रश्मि पाण्डेय 

बिन्दकी ,फतेहपुर

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