*मुहर्रम*
इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक मोहर्रम का चांद नजर आते ही नया साल शुरू हो जाता है। मोहर्रम ग़मी का महीना है। आज मोहर्रम की दसवीं तारीख है मुल्क़ शाम (अरब मुल्कों) में मुल्क़ , आवाम और अमन - सुकून का दुश्मन यज़ीद वहां का बादशाह बन बैठा था। उसके ज़ुल्मों- सितम के लिए जब हज़रत मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हसन और इमाम हुसैन ने उसको समझाना चाहा कि यह ग़लत है इसमें ख़ुदा की मर्ज़ी नहीं है। तो यज़ीद ने उनके और उनके परिवार के लिए पानी भी बंद कर दिया। जिसकी वजह से मोहर्रम की दसवीं तारीख़ को आख़िरी जंग हुई और यज़ीद और उसकी फौज ने हज़रत इमाम हसन और इमाम हुसैन को शहीद कर दिया। इमाम हसन की तरफ छोटे बड़े बच्चे औरतें मिलाकर 72 लोग थे। यजीद की सेना बहुत बड़ी थी उसने सबको हलाल यानी शहीद कर दिया। इसी की याद में मुस्लिम समाज के लोग ताज़ियादारी करते हैं, लंगर लुटाते हैं, शरबत बांटते हैं। और मोहर्रम की 10 तारीख को वह ताज़िए कर्बला में दफ़न किए जाते हैं।
हालांकि यह ग़मी और मातम का महीना है। लेकिन इसे लोग बड़े ही जोश से मनाते हैं हमारे हिंदुस्तान में तो इसको मनाने के लिए हर मजहब हर समाज के लोग बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं।
सच है मज़हबी तहज़ीब देखना है तो हिंदुस्तान में आइये ।