मन की नगरी"

 "मन की नगरी"




छोड़करके शहर;उम्मीद का, 

      मन की नगरी गगन में बसाना हमें। 

भूलकर के सभी शिकवे गिले, 

      भूलना संग रुसवाईयाँ भी हमें  । 

छोड़कर के भी दामन ग़मों का सभी, 

    नाज़ ख़ुद का ही ख़ुद से रखना हमें।

छोड़कर के शहर;उम्मीद का, 

      मन की नगरी गगन में बसाना हमें।

जो चुभन कञ्टकों की ह्रदय में मिली, 

    उन चुभन को पुहुप में बदलना हमें, 

धीर गम्भीर होके जलद की तरह, 

     स्नेह जल धार बनकर बरसना हमें।

छोड़कर के शहर;उम्मीद का, 

     मन की नगरी गगन में बसाना हमें। 

जो तपन थे मिले ज़िन्दगी रूप में, 

     उन तपन की तपन को मिटाना हमें,

बनके शीतल, सुवासित, मधुरतम हवा, 

     'मुस्कान ए अधर' पर सजाना हमें । 

छोड़कर के शहर;उम्मीद का, 

      मन की नगरी गगन में बसाना हमें।




रश्मि पाण्डेय

बिन्दकी फतेहपुर

टिप्पणियाँ