न वो कृषि संस्कृति रही और न रहीं वो फागें-वेद प्रकाश मिश्र

 न वो कृषि संस्कृति रही और न रहीं वो फागें-वेद प्रकाश मिश्र



योगी निकले भवन से, लेकर भगवा रंग,मतदाता भी मूड में, रंगवाने को अंग


होने वाले लोकसभा चुनाव में सभी राजनीतिक दलों पर किया अनुवाद


फागुन का होली से और होली का फाग से है अटूट संबंध



बिंदकी/फतेहपुर। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, समाज के सुख-दुःख उसके स्वयं के सुख-दुःख होते हैं। यह प्रस्तावना त्यौहारों को लेकर सभी ने पढ़ा होगा। होली का त्यौहार जल्द ही आने वाला है, मामले में जब नगर के एक चर्चित शिक्षक एवं कवि वेद प्रकाश मिश्र से मुलाकात हुई तो उन्होंने बड़े ही सरल भाव में आने वाले होली के त्यौहार और लोकसभा चुनाव में सभी राजनीतिक दलों के विषय में वर्णन किया।

      नगर के मोहल्ला मीरखपुर के निवासी वेद प्रकाश मिश्र से एक मुलाकात के दौरान आने वाले होली के त्यौहार एवं लोकसभा चुनाव के संबंध में जब जानकारी ली गई तो उन्होंने अपने कविता के माध्यम से अपने उदगार पेश किए। उन्होंने बताया कि जिस प्रकार फागुन का होली से और होली का फाग से अटूट रिश्ता होता है उसी प्रकार चुनाव का प्रत्यासी और प्रत्यासी का मतदाताओं से रिश्ता होता है। बताया कि होली आने वाली है, सो फाग की चर्चा होना स्वाभाविक है। कहा कि पूर्व में बिंदकी नगर की गल्लामंडी, राइस मिलें दूर-दूर तक जानी जाती थी। यहां व्यापारियों के साथ-साथ कृषकों की भी प्रयाप्त संख्या थी। आज से सात दशक पहले सिद्धपीठ डूंडेश्वर का मंदिर खेत-खलिहानों और बागों के बीच में अवस्थित था। कृषक अपनी फसल की रक्षा के लिए उन्हीं की पूजा करते थे और अपनी उपज की पहली अंजुरी उन्हीं के नाम की निकालते थे। सिद्धपीठ बाबा के प्रति अपनी अगाध श्रद्धा को व्यक्त करते हुए एक फाग की तरह रचते हुए व्यक्त किया कि "डूंडेश्वर बाबा भला करे, भरे रहे भंडार अन्न से, कांडी-मसूर चला करें।" वृद्धों की स्मृतियों में पड़ी ये पंक्तियां बड़ी मुश्किल से संग्रहीत हो पायीं। इसी प्रकार दूसरी फाग के बोल में कहा कि "चारा को कतरैं मोरे भाई, पहुँटा छोट गंडसिया भारी, मूंठा धरा न जाई।।" उक्त दोनों फागों में प्रयुक्त कांडी-मसूर और पहुंटा-गंडसिया आज कृषि संस्कृति से बाहर हो चुके शब्द और यंत्र है। इसीलिए ये फागें भी गायन से गायब हो गई। उक्त पंक्तियां केवल तत्कालीन कृषि संस्कृति और लोक संस्कृति के जुड़ाव की मात्र वाह बनकर रह गई हैं। आगामी 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में सभी राजनीतिक दलों की होली के रंग में भारतीय जनता पार्टी के बारे बोल रखे कि "योगी निकले भवन से, लेकर भगवा रंग, मतदाता भी मूड में, रंगवाने को अंग।।" वहीं बहुजन समाज पार्टी के लिए बोले कि "नीला रंग भर सूंड में, बिन पहुंचाए चोंट, गली-गली हांथी फिरै, खोजे अपना वोट।।" उधर समाजवादी पार्टी पर बोले कि "टांग साइकिल में चटक, लाल रंग का घोल, वोटर रंगने में जुटे, बता रंग अनमोल।।" तो उधर कांग्रेस के लिए "कांग्रेस के अलग हैं, रंग तीन त्रय-बोल, अपने ढंग से रंग रहे, मतदातयी कपोल।।" उसी प्रकार अन्य दलों पर बोले कि "औरों की पिचकारियों, में हैं रंग विशेष, कोई रंगता वक्ष तो, कोई रंगता फेस।।" अंत में उन्होंने कहा कि नए जमाने अर्थात डिजिटल भारत के आगे अब सभी सामाजिक त्यौहारों का अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्त होता जा रहा है। फाग तो अब मात्र किसी गांव में ही सुना और गाया जाता होगा। साथ ही सभी मतदाताओं से अपील किया है कि आगामी लोकसभा चुनाव में सभी मतदातागण ज्यादा से ज्यादा मतदान करके लोकतंत्र को मजबूत बनाएं, ताकि विश्व में हमारा लोकतांत्रिक देश और अधिक मजबूत हो सके।

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