मोहर्रम का चांद दिखा,मजलिसें,मातम शुरू
फतेहपुर।मोहर्रम का चांद रविवार को देखा गया सोमवार से गम-ए-हुसैन मनाने को मजलिसों और मातम का दौर शुरू हो जाएगा शहर से गाँवो तक ताजिये बनाने और ताज़िया रखना भी शुरू हो गया।
रसूल के नवासे इमाम हुसैन और उनके 72 शैदाइयों की शहादत का गम मनाने का दौर चलता है। कर्बला की जंग मानव इतिहास की ऐसी पहली जंग है। जिसमें जीतने वाले यजीद का नाम लेवा न रहा, वहीं इस जंग में शहीद इमाम हुसैन को पूरी दुनिया साल-दर-साल अकीदत के साथ याद करती है। इस जंग ने संदेश दिया कि जुल्म के खिलाफ खड़े होने वाले मर कर भी अमर हो जाते हैं। इसी क्रम में पहली से दस मोहर्रम तक असोथर व शहर में विभिन्न इमाम बारगाहों, दरगाहों और कर्बला में मजलिसों की हलचल रहती है। वहीं शहर और गांव के विभिन्न मोहल्लों में ताजियों और अलम के जुलूस निकाले जाते हैं। असोथर कस्बे में आज मोहर्रम का चांद दिखने के बाद हर घर में इमामबाड़ा सजा दिया गया । और इसी के साथ मजलिस का आगाज़ हो गया। दिन और रात की मजलिसों को संबोधित करने के लिये दूसरे शहरों से मौलाना भी बुलाय जायेंगे है। असोथर में 4 तारीख को रात में ताज़िये का जूलूस 6 तारीख को अलम का जूलूस 7 तारीख को पलंग के जूलूस और 10 मोहर्रम को ताज़िये का जूलूस निकाला जायेगा है। इन जुलूसों में ज़ायरीन बहोत बड़ी तादात में शिरकत करेंगे
मौलवी ने अपील किया है कि मोहर्रम को पूरी शांति से मनाया जाये। शहर काजी ने भी लोगो से अपील किया कि कोई नई परंपरा की शुरुआत ना कि जाए।
मोहर्रम का चांद नजर आते ही गम का अहसास
शाविर सहर अदीब ने बताया कि ईद का चांद नजर आने पर वे खुशियां मनाते हैं, लेकिन जब मोहर्रम का चांद नजर आता है तो दर्दे गम का अहसास होता है। इस दौरान करबला के वे मंजर सामने आते हैं जिनमें हजरत इमाम की कुरबानी और इस्लाम की बका के लिए किया गया काम है। इन्हें कयामत तक इंसानियत भूला नहीं पाएगी। उन्होंने कहा कि आज के दौर की जरूरत है कि हजरत इमाम हुसैन के बताए रास्तों पर चलें।
इसी सिलसिले में मस्जिद में एक मजलिस हुई जिसको इलियाश ने खिताब किया।समशाद,रियाजुल हसन बन्ने खां रियाज खान लाला, रिजवान सहित दर्जनों लोग रहे।