मंदिर और मठ के महंत हुए धंधेबाज
दर्शनार्थी व दूर दराज से आए आगंतुक की सुविधा संसाधन का ख्याल ना रखते हुए वसूली के लिए व्यवस्थापक बन बैठे हैं
वाराणसी।सनातन धर्म में मठा धीसी और महंती ने धार्मिक आस्थाओं का सत्यानाश करने का बीड़ा उठा लिया है एक साधारण व्यक्ति जो मंदिर स्थल पर जाकर स्पर्श दर्शन, माता टेकने के लिए न जाने कितनी मन्नते और लाख कोशिश की बावजूद अपने आराध्य के दर तक पहुंचता है !
अपने मन में आघात प्रेम और विश्वास के साथ बाबा के दरबार में पहुंच हाजिरी लगता है और लाख कठिनाइयों का सामना करना पड़े लेकिन फिर भी वह वहां तक जाना चाहता है क्योंकि उसके मन में एक आघात प्रेम अलौकिक भाव के साथ एक विश्वास को जन्म देती है जिससे धर्म और व्यक्ति के कर्म दोनों को शुद्धि मिलती है अर्थात उफान ले रही मन में भावना मंदिर स्थल तक पहुंच कर उसको शांति मिलती है !
मन्दिर का शाब्दिक अर्थ 'घर' है वस्तुतः सही शब्द 'देवमन्दिर', 'शिवमन्दिर', 'कालीमन्दिर' आदि हैं। और मठ वह स्थान है, जहां किसी सम्प्रदाय, धर्म या परम्परा विशेष में आस्था रखने वाले शिष्य आचार्य या धर्मगुरु अपने सम्प्रदाय के संरक्षण और संवर्द्धन के उद्देश्य से धर्म ग्रन्थों पर विचार विमर्श करते हैं या उनकी व्याख्या करते हैं, जिससे उस सम्प्रदाय के मानने वालों का हित हो और उन्हें पता चल सके कि, उनके धर्म में क्या है। उदाहरण के लिए बौद्ध विहारों की तुलना हिन्दू मठों या ईसाई मोनेस्ट्रीज़ से की जा सकती है। लेकिन 'मठ' शब्द का प्रयोग शंकराचार्य के काल यानी सातवीं या आठवीं शताब्दी से शुरु हुआ माना जाता है।
*आज हम बात करते हैं वाराणसी के विश्व प्रसिद्ध मंदिरों की*..
*काल भैरव के काशी में स्थापित होने के पीछे एक बहुत ही रोचक पौराणिक कथा है*।
एक बार ब्रह्माजी और विष्णुजी के बीच यह चर्चा छिड़ गई कि दोनों में बड़ा कौन है? चर्चा के बीच शिवजी का जिक्र आने पर ब्रह्माजी के पांचवें मुख ने शिव की आलोचना कर दी, जिससे शिव बहुत क्रुद्ध हुए। उसी क्षण भगवान शिव के क्रोध से काल भैरव का जन्म हुआ। इसी कारण काल भैरव को शिव का अंश कहा जाता है। काल भैरव ने शिवजी की आलोचना करनेवाले ब्रह्माजी के पांचवें मुख को अपने नाखुनों से काट दिया।
*काशी विश्वनाथ* : यह स्थान शिव और पार्वती का आदि स्थान है इसीलिए आदिलिंग के रूप में अविमुक्तेश्वर को ही प्रथम लिंग माना गया है। हिन्दू धर्म में सर्वाधिक पवित्र नगरों में से एक माना जाता है और इसे अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है। इसके अलावा बौद्ध एवं जैन धर्म में भी इसे पवित्र माना जाता है। वाराणसी की संस्कृति का गंगा नदी, श्री काशी विश्वनाथ मन्दिर एवं इसके धार्मिक महत्त्व से अटूट रिश्ता है।
काशी विश्वनाथ मंदिर सबसे प्रसिद्ध हिंदू मंदिरों में से एक है. यह भगवान शिव को समर्पित है. यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है ये शिव के सबसे पवित्र मंदिरों में से एक है. मंदिर के प्रमुख देवता श्री विश्वनाथ हैं जिसका अर्थ है ब्रह्मांड के भगवान !
*संकट मोचन हनुमान*
बजरंगबली ने गोस्वामी तुलसीदास को दिए थे दर्शन, मिट्टी का स्वरूप धारण कर हो गए स्थापित
देश के ऐतिहासिक मंदिरों में से एक है, काशी के संकट मोचन हनुमानजी का मंदिर।
देश के ऐतिहासिक मंदिरों में से एक है, काशी के संकट मोचन हनुमानजी का मंदिर। पुराणों में बताया गया है कि, काशी के संकट मोचन के मंदिर का इतिहास करीब चार सौ वर्ष पुराना है। बताया जाता है कि, संवत 1631 और 1680 के बीच इस मंदिर को बनवाया गया था। मंदिर की स्थापना गोस्वामी तुलसीदासजी ने कराई थी। मान्यता है कि जब वे काशी में रह कर रामचरितमानस लिख रहे थे, तब उनके प्रेरणा स्त्रोत संकट मोचन हनुमान थे। इसी मंदिर में हनुमानजी ने राम भक्त गोस्वामी तुलसीदासजी को दर्शन दिए थे, जिसके बाद बजरंगबली मिट्टी का स्वरूप धारण कर यहीं स्थापित हो गए थे। कहा जाता है कि यहां आने वाले भक्तों के सभी कष्ट हनुमान के दर्शन मात्र से ही दूर हो जाते हैं।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि श्रद्धालुओं के साथ भेदभाव और मंदिर परिसर में मनमानी तरीके से अवैध वसूली जैसे मिष्ठान या चढ़ाए जाने वाली सामग्री फूल माला अन्य प्रकार के जिनका कोई मानक ही नहीं और तो और व्यवस्था के नाम पर केवल वसूली में लगे रहते हैं और श्रद्धालुओं को ठगने का काम करते हैं।
दर्शन कराने के नाम पर किसी से सौ तो किसी से हजार जो भी मिल जाए अपनी जुगत लगा लेते हैं यह किसी एक मंदिर की बात नहीं जितने भी मंदिर है वहां यह व्यवस्था सुचारू रूप से संचालित हो रही है केवल महंत के चेले ही नहीं बल्कि पुलिस विभाग के भी तैनात कर्मिक वसूली में लिप्त है लगातार इस तरीके की खबरें प्रकाशित होती रहे लेकिन कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता !
काल भैरव मंदिर में तो यह स्थिति है कि महंत खुद ही लगे रहते हैं चेलों के साथ किसी भी तरीके से व्यवस्था भरपूर मिलना चाहिए यहां तक कि यदि कोई सैकड़ो रुपए चेलों को दे दे तो वहां मंदिर में स्थित पुजारी बाबा के स्पर्श दर्शन की छूट दे सकता है और तो और मनमानी तौर पर पीछे से लोगों को दर्शन का सुविधा दिया जाता है जिसके पीछे सिक्को की खनक होती है !
महंत हो या पुजारी उनको एक बात समझ लेना चाहिए यह उनकी जागीर या प्रॉपर्टी नहीं की जैसे चाहें वैसे इस्तेमाल करें निजी स्वार्थ के लिए यह आम जनमानस की आस्था का देवस्थल है जहां सबका बराबर का अधिकार है और यदि अंदर बैठकर खुद को व्यवस्थापक समझते हो इस भ्रम में मत रहना बाबा का दरबार है उनकी नजर चहु ओर है देर ही सही लेकिन अंधेरगिरी नहीं चलेगी!