दूसरों की भलाई और भवसागर पार होने का जो रास्ता- नामदान बताया गया, इस पर चलो और चलाओ*
*दूसरों की भलाई और भवसागर पार होने का जो रास्ता- नामदान बताया गया, इस पर चलो और चलाओ*

*इतिहास साक्षी है, बाहर की जड़ पूजा से किसी को कुछ नहीं मिला*


उज्जैन (म.प्र)इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि आदमी को अच्छे बुरे की पहचान हो जाती है। अगर आपके अंदर कोई बुराई आ गई हो, चाहे संग दोष, अन्न दोष या स्थान दोष से, किसी भी तरह से बुराई आई हो, छोड़ दो। लोग त्योहार के दिन अपनी बुराइयों को छोड़ते थे। आप भी बुराइयों को छोड़ो और अच्छाई को अपनाओ।

*गांव-गांव में नामदानियों का पता लगाकर साधना करो, कराओ*

कौन सी अच्छाई को अपनाओ? दूसरों की भलाई करो। दूसरों के आत्मा के कल्याण का, भवसागर से पार होने के लिए बताये गए रास्ते पर लोग चलने लग जाए। यहां से जाने के बाद पता करो कि हमारे गांव में कौन-कौन लोग नामदानी हैं। बहुत से लोग नामदान लेकर चले जाते हैं लेकिन उनका आना-जाना नहीं होता है। उसी वजह से वही पुरानी जड़ पूजा-पाठ में लग जाते हैं, व्यस्त हो जाते हैं, उसी में फंस जाते हैं, इस असली चीज को लोग छोड़ देते हैं।

*नाम की महिमा के बारे में लोगों को बताओ*

लेकिन जब आप उनको समझाओगे, बताओगे कि सब कुछ जानने-समझने का यही सब कुछ मूल है, शब्द से ही ये संसार, देवी-देवता बने हैं, आप जब इस शब्द भेदी, ध्वनात्मक नाम को जपोगे, गुरु के आदेश का पालन करोगे तब आप सुखी होंगे। शरीर और आत्मा दोनों सुखी होगी। तभी आपका संकट जाएगा नहीं तो- 

*अनुभव और प्रैक्टिकल*

देखो इतिहास भरा पड़ा हुआ है बाहर की जड़ पूजा से किसी को कुछ नहीं मिला। जो इस समय लोग कर रहे हैं, लोमस ऋषि आदि तमाम ऐसे लोग हुए हैं, उन्होंने वैसा बहुत कुछ किया, लेकिन पार होने का रास्ता नहीं मिला। लौट-लौट चौरासी आया। जब आप समझाओगे, नाम की महिमा बताओगे और कहोगे कि करके देख लो। एक तो कहना होता है और एक करके दिखाना होता है।

*जीवन का सही उद्देश्य*

दोनों तरह से करके दिखाना होता है। जैसे अच्छा और बुरा, दोनों करके लोग दिखा देते हैं। जैसे एक तो डांट फटकार करता है, एक कहता है तुमको मारेंगे। एक ऐसा होता तो तड़ाक से मारता है। तो क्या करता है? बुरा करता है। अच्छा भी दिखाना होता है। बुराई और अच्छाई अनुभव में तब आता है जब आदमी अनुभव करना चाहता है। (साधना में) अपने साथ (नयों को) बैठाओ और खुद भी बैठो तब तो अनुभव होगा। नहीं तो जब भाषण दोगे, भाषण देने वाले तो बहुत हैं। भाषण से काम नहीं होता है।

*मानव धर्म की पूर्णता*

जैसे स्कूलों में प्रैक्टिकल कराया जाता है। बड़ी-बड़ी लैबोरेट्रीया प्रयोगशाला में प्रयोग करते हैं, कोई चीज का रिसर्च करते हैं। चांद आदि ग्रहों पर जाने की तैयारी जो हो रही हैं, यह हवाई जहाज जो उड़ रहा है ये सब प्रैक्टिकल से बना है। जब प्रैक्टिकल करो, कराओगे तब परमार्थी काम बनेगा, तब परोपकार होगा। यह मानव शरीर पाने का काम, मानव धर्म है कि इस जीवात्मा को मुक्ति-मोक्ष दिला दिया जाए, यह वापस फिर मृत्यु लोक में न आवे तब यह काम पूरा होगा।
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