*उज्जैन आश्रम से जुड़ी बाबा जयगुरुदेव संगत का कोई भी व्यक्ति किसी से कोई चंदा, चुटकी सेवा, दान आदि नहीं लेने जाता*
*तन,मन व धन से जाने-अनजाने में बने पाप कर्म सेवा करने से कटते हैं*
बलरामपुर (उ.प्र)परम् सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बलरामपुर में दिए सन्देश में बताया कि जैसे शरीर से पाप कर्म होने पर उससे मिलने वाली तकलीफों को काटने के लिए शरीर से सेवा करनी पड़ती है, इसी प्रकार धन से भी पाप हो जाता है। कहा है-
गुरु बिन माला फेरते, गुरु बिन करते दान।
गुरु बिन दोनों निष्फल हैं, पूछो वेद पुराण।।
जैसे आपने तो किसी को अच्छे भाव में दान दिया लेकिन वो दान लेने वाला गया और बकरा काटा, मुर्गा खाया तो जीव हत्या हुई और पाप आप को लगा, धन का पाप किया तो आपके ऊपर इसका असर आएगा।
*तन मन धन से बने पाप को काटने का तरीका*
मनसा, वाचा और कर्मणा तीन तरह के पाप होते हैं। अब आपके द्वारा बन गए पाप कैसे कटेंगे ? आपके तन, मन या धन जिससे आपने पाप किया है, उसी से जब सेवा करोगे तब वह कर्म कटेंगे। जैसे शरीर की सेवा है, धन की सेवा और मन की भी सेवा है। मन अगर न लगे तो कोई काम नहीं हो सकता है। कहीं धन की भी जरूरत पड़ती है और कहीं शरीर से सेवा की जरूरत पड़ती है। जैसे आपने सतसंग कार्यक्रम में जल्दी आकर के तैयारी की, व्यवस्था सेवा की, यहाँ आये। नये-पुराने कैसी के भी समझ में सतसंग की एक भी बात आ गयी और अगर वह करने लग गए,और फायदा हो गया तो आप भी पुण्य के भागीदार हो जाओगे। भूखे-प्यासे को खिलाने-पिलाने की तरह ही जब जीवात्मा को अंदर का, शब्द का आहार मिल जाएगा तब वह खुश होकर आशीर्वाद देगी। आप यहां जल्दी आकर के कार्यक्रम की तैयारीयों के लिए शरीर से मेहनत किए, टेंट आदि इंतजाम सब आपने किया। कुछ न कुछ धन लगा होगा। कोई चाचा कहने से तो आपको सामान दे नहीं दिया होगा! यह तो सब आपसे किराया खर्चा आदि लेंगे ही, बिल बनाएंगे। पैसा किसका लगा ? आप लोगों का लगा।
*चन्दा, दान मांगने वाला व्यक्ति बाबा जयगुरुदेव संगत उज्जैन का नहीं है*
सतसंग कार्यक्रम में आप कस्बे के, गांव के स्थानीय लोग कोई भी जिम्मेदार, रोजगार करने वाले, दुकानदार, प्रतिष्ठित लोग बैठे हो, आपके यहां कोई भी चंदा मांगने नहीं गया होगा। अगर गया भी होगा तो वह बाबा जी का आदमी नहीं है। वह व्यक्ति, बाबा जयगुरुदेव संगत जो उज्जैन से जुड़ी हुई है, उनका आदमी नहीं है। हमारे सतसंगी किसी से कुछ नहीं मांगते, आप प्रेमियों ने सब किया। आपका कुछ लगा , जो धन से पाप हो गया वह इससे कटता है। आपने मन लगाया तभी तो आप आए, तभी तो सुन रहे हो, समझ रहे हो। मन आपका लग गया तो आप सेवा करोगे तो फल मिल जाएगा। यह है सेवा, तो सेवा करना चाहिए।
*रोज की सेवा*
आपको यह जो दो-चार दिन की सतसंग व नामदान कार्यक्रम आयोजन सम्बंधित सेवा मिल रही है, ये रोज तो मिलेगी नहीं। लेकिन कर्म रोज करोगे और उसे काटोगे नहीं तो वही फिर तकलीफ-दु:ख देगा। जैसे घर में रोज झाड़ू अगर न लगाएं तो कूड़ा इकट्ठा हो जाएगा, बिमारी आएगी। ऐसे ही रोज सुमिरन, ध्यान, भजन करो, प्रचार करो, कुछ न कुछ अच्छी बात बताओ। जिस चीज को लोग भूल रहे हैं कि क्या खाना चाहिए, क्या पहनना चाहिए, किस तरह से रहना चाहिए, भाई-भाई के साथ, पिता-पुत्र के साथ कैसा बर्ताव करे, पति-पत्नी का फर्ज क्या होता है आदि तब उनका यह गृहस्थ आश्रम स्वर्ग बन सकता है।