भारतीय समाज में नारी की बहुमुखी भूमिका होते हुए भी पुरुष प्रधान समाज नारी के स्वास्थ्य के प्रति पर्याप्त संवेदनशील नहीं

भारतीय संस्कृति में नारी का महत्व इसी बात से लगाया जा सकता है कि धरती और विशेष रूप से भारत को माता के रूप में पूजा जाता है, लेकिन यह देखा जाता है कि भारतीय समाज में नारी की बहुमुखी भूमिका होते हुए भी पुरुष प्रधान समाज नारी के स्वास्थ्य के प्रति पर्याप्त संवेदनशील नहीं दिखता। ऐसी परिस्थिति में प्रत्येक भारतीय नारी को अपने स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देना चाहिए, क्योंकि नारी स्वास्थ्य का मतलब परिवार, शहर और देश का स्वास्थ्य है।


न होने पाए खून की कमी: चाहे वह किशोरी हो, गर्भवती महिला या बच्चे को स्तनपान कराने वाली माता। ज्यादातर महिलाएं आयरन की कमी के चलते खून की कमी का शिकार होती हैं। महिलाओं के शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी को साधारणत: रक्तहीनता कहा जाता है। इससे शरीर के सभी अंगों में ऑक्सीजन युक्त खून पर्याप्त मात्रा में नहीं पहुंच पाता, जो कि शरीर की हर कोशिका को जीवित रखने के लिए जरूरी होता है। रक्तहीनता के कारण शरीर में थकान, सांस फूलना और अन्य गंभीर लक्षण दिखाई देते हैं। ऐसे स्थिति में आयरन यानी लौह युक्त पौष्टिक भोजन पर ध्यान देना जरूरी है।


भारतीय परंपरा में कई व्रत में गुड़ और चने के प्रसाद के रूप में सेवन के पीछे शायद यही वैज्ञानिक तर्क है। इस प्रसाद से प्राकृतिक रूप में मिल रहा आयरन व प्रोटीन किसी भी दवाई से बेहतर है और इसका कोई प्रतिकूल प्रभाव भी नहीं है। लोहे की कड़ाही में पकी हरी सब्जियों का सेवन भी रक्तवृद्धि में सहायक होता है। छोटी बच्चियों और बढ़ती उम्र की किशोरियों को हड्डियों के विकास के लिए कैल्शियम युक्त व मासिक रक्तस्राव से जनित खून की कमी की र्पूित के लिए लिए आयरन युक्त पौष्टिक भोजन अनिवार्य रूप से मिलना ही चाहिए। कारण, इनमें रक्त की कमी न सिर्फ कई बीमारियों को जन्म देती है, बल्कि शारीरिक विकास में बाधा बनती है।



हर सदस्य की है जिम्मेदारी: गर्भवती महिलाओं का विशेषतौर पर ध्यान रखना जरूरी है, क्योंकि गर्भवती महिला के साथ शिशु का जीवन भी जुड़ा होता है। सारे मिनरल्स और विटामिंस से परिपूर्ण पौष्टिक आहार गर्भवती महिला और उसके होने वाले बच्चे के लिए अत्यंत जरूरी है साथ ही गर्भधारण के दौरान होने वाली शारीरिक और मानसिक पीड़ा से निपटने के लिए उनका शारीरिक और मानसिक साथ देना परिवार के हर सदस्य की जिम्मेदारी है। गर्भवती माता की स्वस्थ मानसिक स्थिति न केवल नौ महीने सुखद गर्भधारण के लिए जरूरी है, बल्कि शिशु की सेहत के लिए भी जरूरी है। मां का तनाव शिशु के शारीरिक तथा मानसिक विकास को प्रभावित करता है। महाभारत में र्विणत अभिमन्यु की गाथा को अगर वैज्ञानिक चिंतन से जोड़कर देखा जाए तो यह सार निकलता है कि स्वस्थ व बुद्धिमान बच्चे के जन्म के लिए माता का शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ होना जरूरी है। इसके लिए पारिवारिक जिम्मेदारी अनिवार्य है।


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