सदियों पुराना बाबा लटेश्वर धाम का मेला---
मंदिर न शिवाला,मूर्त्ति न पुजारी फिर भी उमड़ता है कार्तिक पूर्णिमा में श्रृद्धालुओं का सैलाब
बिंदकी /फतेहपुर
न मंदिर न शिवाला, फिर भी यहां उमड़ता है श्रृद्धालुओं का जनसैलाब।आस्था के इस दरबार में न कोई मूर्ति है न कोई पुजारी। इसके बाद भी आस्थावानों की पूरी होती है मुरादें। जनपद के कस्बा बकेवर में भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने वाले लटेश्वर धाम में श्रद्धालुओं का आज तांता लगा रहा ।इस तीर्थ स्थल में प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा के दिन लगता है मेला ।जहां श्रद्धालु मिट्टी के बने शिवलिंग जिन्हें जोड़ी कहा जाता है आकर
भगवान लटेस्वर को अर्पित करते हैं सदियों से चले आ रहे इस मेंले में क्षेत्रीय ही नहीं बल्कि सुदूर प्रांतों के लोग भी बाबा के दरबार में अपनी अरदास लगाने आते हैं।
भगवान लटेश्वर धाम में आए श्रृद्धालुओं का कहना है कि बाबा से जो मनौती मानी जाती है उसे बाबा जरुर पूरी करते हैं। दरबार में लोग मनौती पूरी हो जाने पर बाबा के दरबार में नर्तकियों का नृत्य कराते हैं। आस्थावानों का मानना है कि बाबा को नृत्य बहुत पसंद है। यही वजह है मनौती पूरी हो जाने पर नृत्य का आयोजन पूरे वर्ष तक लोग करते रहते हैं।
बकेवर कस्बे के 105वर्षीय वृद्ध सूरज नारायण तिवारी का कहना है कि बाबा लटेश्वर के दरबार से कोई भी याचक मायूस नहीं हूआ। सबके मनोरथ पूर्ण होते आ रहे हैं। दरबार में मनौती मानने वाले अनेक निसंतान दम्पतियों को संतान प्राप्ति हुई।अनोको को रोजगार व सरकारी नौकरियां मिली।आईएएस व पीसीएस के सपने पूरे हूए।जिन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी उनकी सजा कारावास में बदल गई। यही वजह है सुदूर प्रांतों के लोग भी श्रृद्धा के साथ बाबा की दरबार में माथा टेकने आते हैं।
उन्होंने बताया कि कई शताब्दियों से इस दरबार में शिवलिंग (जोड़ी) चढ़ाने का सिलसिला चला आ रहा है किंतु हर वर्ष हजारों की संख्या में चढ़ाएं जाने वाले शिवलिंगों की संख्या उतनी ही दिखाई देती है।
बाबा के दरबार में यूं तो होली के बाद दूर रहती के दिन भी विशाल मेला लगता है जहां क्षेत्र के अनेक स्थानों से नृत्य और पाक की टोलियां यहां आती हैं और बाबा को मस्तक झुका कर बर मांगती है इस आस्था के मंदिर में कुंभ का रुको रोजगार का भी अवसर मिलता है कार्तिक पूर्णिमा के 1 माह पूर्व से क्षेत्र के कुम्हार से लोगों का गणना शुरू कर देते हैं और कार्तिक पूर्णिमा के दिन दरबार के पास आकर अपनी दुकानें सजाते हैं। यहां आने वाले कुम्हारों ने बताया कि बाबा की कृपा से हर वर्ष उनकी कमाई हो जाती है। प्लास्टिक युग आ जाने से हुंडे सकोरो की मांग न होने से उनका धन्धा चौपट सा हो गया है। अनेक लोगों ने इस व्यवसाय को छोड़कर मजदूरी कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं।
मेलें में फल चाट गोलगप्पे व मूंगफली आदि की दूकाने लगती है।
इस वर्ष सबसे खास बात यह रही कि श्रृद्धालुओं ने कोविड-19के नियमों का पालन करते हुए सामाजिक दूरी बनाकर पूजा अर्चना किया।