"प्रहरी"
मौन समाहित मूक अधर में,
हैं तटस्थ प्रहरी बन के l
श्वास- श्वास जीवन देकर के,
हम संरक्षक पर्यावरण के l
समय की धारा अविरल बहकर,
पतझर से बसंत बन के l
हैं अनंत के तारक मंडल,
गगन सूर्य आभा बनके l
मौन समाहित मूक अधर में,
हैं तटस्थ प्रहरी बन के l
समय समय की बात निराली,
प्रकृति बनी है मतवाली l
बन दुल्हन रजनी, चंदा की,
मिलन वार में गयी सदके l
स्वाति नक्षत्र की बूँद पियन को,
चक्रवाक है लीन पिपास के l
मौन समाहित मूक अधर में,
हैं तटस्थ प्रहरी बन के l
मन- मयूर होकर मतवाली,
लीन हो रहा नर्तन में l
मन है मुदित, नयन है प्रमुदित,
प्रकृति लजाती दुल्हन बनके l
सगरे जग सौंदर्य बिखेरा,
कायाकल्प प्रकृति ने कर के l
मौन समाहित मूक अधर में,
हैं तटस्थ प्रहरी बन के l
रश्मि पाण्डेय
ARP मलवाँ,
बिंदकी, फतेहपुर