" मुलाकात"
चलो कुछ दूर चलते हैं,
शायद सत्य से मुलाकात हो जाये l
अपनों की तलाश करते हैं,
शायद कुछ बात हो जाये l
ज़िंदगी ! बहुत हो चुका,
खेल आँख मिचौली का,
एक बार खुली आँखो से,
ख़ुद की तलाश करते हैं l
हर पन्ने को ह्रदय से पढ़ते हैं,
शायद रिश्ते मज़बूत हो जायें l
चलो कुछ दूर चलते हैं,
शायद सत्य से मुलाकात हो जाये l
बहुत हो गया दूसरों की सुनते,
एक बार अपने- आप की सुनते हैंl
चलो क्षितिज के पार जाकर,
अभौतिकता के पार उतरते हैं l
बस अपनी राह चलते हैं,
शायद मंज़िल मिल जाये l
चलो कुछ दूर चलते हैं,
शायद सत्य से मुलाकात हो जाये l
रश्मि पाण्डेय बिंदकी, फतेहपुर