भारत में हो एक पाठ्यक्रम, सीबीएसई प्रणाली को समावेशी बनाकर हर राज्य में किया जाए लागू
न्यूज़।एक देश-एक राशन कार्ड, एक देश-एक ग्रिड, एक देश-एक परीक्षा संभव है तो एक देश-एक पाठ्यक्रम क्यों नहीं हो सकता है? सबको शिक्षा की संवैधानिक गारंटी देने वाले देश में स्कूल, बोर्ड, परीक्षा और पाठ्यक्रम के स्तर पर भेदभाव क्यों है? क्यों देश के पांच प्रतिशत बच्चे तुलनात्मक रूप से श्रेष्ठ केंद्रीय शिक्षा बोर्ड से शिक्षा हासिल करते हैं और 95 प्रतिशत अलग-अलग राज्यों के बोर्ड पर निर्भर हैं? नई शिक्षा नीति बुनियादी रूप से सभी स्कूलों में शिक्षा, पाठ्यक्रम और परीक्षा प्रणाली में एकरूपता की वकालत करती है। संयोग से हाल में शिक्षा एवं बाल मामलों से जुड़ी एक संयुक्त संसदीय समिति ने केंद्र सरकार का ध्यान विविध शिक्षा बोर्ड एवं परीक्षा प्रणालियों से निर्मित होने वाली व्यावहारिक परेशानियों की ओर आकृष्ट किया है। अभी देश में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) और इंडियन सर्टिफिकेट आफ सेकेंडरी एजुकेशन (आइसीएसई) के रूप में केंद्र सरकार के शिक्षा बोर्ड कार्यरत हैं। सीबीएसई संचालित स्कूलों में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) का पाठ्यक्रम और आइसीएसई में केवल अंग्रेजी माध्यम का अलग पाठ्यक्रम पढ़ाया जाता है। देश के महज पांच प्रतिशत स्कूली बच्चों को यह उपलब्ध होता है। राज्यों के अपने अलग माध्यमिक शिक्षा बोर्ड हैं। कुछ राज्यों में ओपन एवं संस्कृत बोर्ड भी हैं जिनमें पढ़ने वाले बच्चों के मध्य यह स्थापित धारणा है कि सीबीएसई उनके बोर्ड से श्रेष्ठ है। अभिभावकों के स्तर पर भी यही मानसिकता काम करती है।इस तथ्य से कोई भी इन्कार नहीं कर सकता है कि देश में स्कूली शिक्षा का ढांचा सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर एक विभेदकारी समाज का निर्माण कर रहा है। खुद सरकारों ने इसे अपनी नीतियों से बढ़ाया ही है। केंद्र सरकार अगर अपने कार्मिकों के लिए केंद्रीय विद्यालय संगठन के जरिये सीबीएसई नियंत्रित पाठ्यक्रम और परीक्षा प्रणाली का संचालन कर सकती है और अन्य सक्षम लोगों के लिए निजी स्कूलों के जरिये ऐसी सुविधा उपलब्ध कराती है, तब सवाल यह कि देश के शेष बच्चों को सीबीएसई या आइसीएसई जैसी प्रतिस्पर्धी शिक्षा व्यवस्था से वंचित क्यों रखा जाए? क्यों कुछ राज्यों के बच्चे अन्य राज्यों के बच्चों या सीबीएसई संबद्ध बच्चों से प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाते हैं? जवाब राज्यों के बोर्ड का सरकारी र्ढे पर चलना है। केंद्रीय विद्यालय संगठन आज देश भर में 25 क्षेत्रीय कार्यालयों के जरिये 1,200 से अधिक स्कूलों का संचालन करता है। इनके अलावा देश में करीब 25 हजार ऐसे निजी स्कूल हैं, जो सीबीएसई से मान्यता प्राप्त हैं। 700 से अधिक नवोदय विद्यालय भी इसी तर्ज पर देश के हर जिले में पहले से ही चल रहे हैं। केंद्रीय जनजातीय मंत्रालय द्वारा जिन एकलव्य आवासीय विद्यालयों एवं कन्या आश्रमशालाओं को संचालित किया जा रहा है, वे भी केंद्रीय विद्यालय की प्रतिकृति ही हैं।