" एहमियत "
राहें तुम्हारी छोड़ करके,
मुक्त तुमको कर दिया l
जो ढो रहे थे बोझ मन का,
आज हल्का कर दिया l
साथ होकर सह रहे थे,
वो दूरियों में भी सहे l
लो आज मन गमगीन करके,
लौह हिय को कर लिया l
क्या करोगे बोझ ढोकर ?
स्नेह मन में जब नहीं l
ज़िंदगी की धूप में भी ,
ख़ुद को तपा उसने लिया l
मुस्कुराहट पे न जाओ,
ये मुस्कुराहट दंभ है l
हर ग़म समेटे जी रहे वो ,
ख़ुशहाल तुमको कर दिया l
क्लेश पाले थे जो मन का,
परतंत्रता की बेड़ियों सम l
जी के देखो ज़िंदगी अब,
क्या दूर तुमने कर दिया ?
बहुमुल्यता रिश्तों की क्या है ?
जान अब तक पाए न l
दूर कर ह्रदय से उसने,
सुख सर्व तुमको दे दिया l
रश्मि पाण्डेय
बिंदकी, फ़तेहपुर