"दृष्टिकोण"
इक ध्येय बनाकर जीती मैं,
सत्यांकुर ह्रदय पनपता है l
है लक्ष्य मेरा अति गहरा,
जो नयन स्वप्न में तिरता है l
है दोष मेरे जीवन का ये,
पाखंड नहीं कर पाती मैं l
ह्रदय समाहित भाव मेरे,
अधर शब्द में दिखता है l
मेरे व्यक्तित्व का ढाल वही,
जो सत्य समाहित रहता है l
जीवन का भी है मोह नहीं,
कर्तव्य मोह में रहता है l
कलाकृति जग ईश्वर की,
नावकृति मन रमता है l
अभ्यास जटिलता की ही है,
पहचान मेरी यह दृढ़ता है l
रश्मि पाण्डेय
बिंदकी, फतेहपुर