"मुश्किलें"
चलो चुभन मन पीर छोड़ के,
नई राह पर चलते हैं l
अपनी कुछ पहचान बनाने,
बाधाओं को हरते हैं l
छोड़ों अब उम्मीदें सारी,
चलो छोड़ के सारी यारीl
कहीं कोई कुछ काम न आये,
कहीं नहीं अब रिश्तेदारी l
मन हल्का न कहीं भी होगा,
ख़ुद ही तुझे संभलना होगा l
ख़ुश ख़ुद को ही रखना होगा,
यही है ख़ुद की ज़िम्मेदारी l
तुझे अडिग अब रहना होगा,
लौह तुझे ही बनना होगा l
कहीं भी माथा पटक नहीं,
कठिनाई की है अब बारी l
चलो सहन करके सब बातें,
अधरों से मुस्कातें हैं l
अपनी कुछ पहचान बनाने,
बाधाओं को हरते हैं l
रश्मि पाण्डेय
बिंदकी, फ़तेहपुर