"पूरक"
मेरी सृष्टि भी तुझमें है,
तेरी सृष्टि भी मुझमें है l
चलो मिलकर के हम दोनों,
प्रकृति के पार चलते हैं l
बड़ी मुश्किल से पाया है,
निभाया मुश्किलों में ही l
चलो फ़िर से ही हम दोनों,
मधुर झंकार बनते हैं l
न होना लिप्त जीवन में,
न खो जाना उपलब्धि में l
ये जीवन है मेरे प्यारे !
चलो फ़िर से समझते हैं l
कभी अचरज में मन होता,
नयन विस्फ़ारित भी होतें l
बड़ी हैवानियत जग में,
चलो मिलकर मिटातें हैं l
मेरी कविता मुझमें है,
मैं कविता में समाहित हूँ l
कहीं फ़िर से न खो जाएं,
चलो कुछ खोज लाते हैं l
ह्रदय की भावनाओं को,
सह्रदय होकर पढ़ते हैं l
जिया कैसे यूँ हीं जाए,
चलो कुछ बेहतर करते हैं l
रश्मि पाण्डेय
बिंदकी, फ़तेहपुर