सन्तों का निशाना जीवों को कैसे भी बता-समझा कर, अनुभव करा कर पार करने का होता है

 सन्तों का निशाना जीवों को कैसे भी बता-समझा कर, अनुभव करा कर पार करने का होता है



आषाढ़ मतलब गर्भ में बच्चे को आशा रहती कि मनुष्य शरीर मिलेगा, समर्थ गुरु की खोज करके उद्धार का रास्ता लेकर पार हो जाएंगे


इन 12 महीनों के होते हैं अलग-अलग अर्थ, मतलब


उज्जैन (मध्य प्रदेश)।सभी जीवात्माओं द्वारा गर्भ के भारी कष्ट से राहत देने, बाहर निकल कर पूरे समरथ सन्त सतगुरु को खोज कर जीते जी मुक्ति-मोक्ष पाने के प्रभु से किये वादे और आशा की याद दिलाने वाले इस समय के पूरे समर्थ सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी ने 16 अप्रैल 2022 को चैत्र पूर्णिमा पर उज्जैन आश्रम में दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि 12 महीनों के अलग-अलग अर्थ मतलब है। आज चैत्र की पूर्णिमा है, कल से वैशाख लग जाएगा। फिर ज्येष्ठ, आषाढ़, सावन, भादो आदि। इन महीनों में करना क्या चाहिए, इनका मतलब क्या होता है, इसको नहीं समझ पाते हैं।


*सूर्य और चंद्रमा का बच्चे के शरीर को बनाने में हैं महायोग*


आषाढ़ से ठंडी, शीतलता की शुरुआत होती है। ज्येष्ठ तप कर, तेज रोशनी, प्रकाश, ताकत देकर के खत्म होता है। सूरज की गर्मी, किरणों में बहुत ताकत होती है। इन्ही से बच्चे की उत्पत्ति होती है। सूर्य और चंद्रमा का शरीर के बनने में महायोग है। ये अगर न होते तो शक्तियां, तत्व जिनसे शरीर की उत्पत्ति होती है, ये उत्पन्न न होते।


*मां के पेट में बड़ी तकलीफ कष्ट होता है बच्चे को*


आषाढ़ का क्या मतलब होता है? जैसे बच्चा पैदा हुआ तो आशा लेकर के आता है कि हमको मनुष्य शरीर मिला है। अब हम अपनी आत्मा का उद्धार इससे कर लेंगे। अब हम मां के पेट में दोबारा दु:ख झेलने के लिए नहीं जाएंगे। आपको सतसंगों में बताया गया है कि मां के पेट में बहुत तकलीफ, बड़ा कष्ट होता है, जेलखाना, काल कोठरी से बहुत ज्यादा। वहां तो थोड़ा इधर-उधर घूमने की जगह होती है लेकिन मां के पेट में बच्चा हाथ-पैर फैला करके सोना चाहे, सो नहीं सकता। गठरी के समान बंधा पड़ा रहता है। (मां के पेट की) तपन गर्मी बर्दाश्त से बाहर होती है।


*आप भी अपने वादे, आशा को याद करो*


रोटी या चावल को तेज गर्म पानी में डालो तब भी जल्दी घुलेगा नहीं लेकिन पेट में पड़ने पर पेट की अग्नि उसको जल्दी घुलाने-पचाने लगती है। जैसे भोजन के आधा घंटे बाद उल्टी में अध पचा निकलता है, सीधा, साबुत नहीं निकलता। मतलब मां के पेट में बड़ी गर्मी रहती है। लेकिन (गर्भ में बच्चे को) ज्ञान, आशा रहती है कि हमको मनुष्य शरीर मिलेगा, उद्धार का रास्ता उसमें रहेगा, समरथ गुरु खोजेंगे, मिलेंगे, उनसे रास्ता लेकर पार हो जाएंगे, दुबारा इसमें (शरीर में) नहीं आएंगे। आषाढ़ का मतलब आशा लेकर के बच्चा आता है। तो आप भी अपने वादे, आशा को याद करो और पूरे समरथ गुरु को खोज कर अपना मानव जीवन सफल बना लो।


*सन्त उमाकान्त जी के वचन*


सतगुरु के दया की दृष्टि से कर्म कर्जा आसानी से अदा हो जाता है। देशभक्त बनो और देश हित में काम करने वालों की मदद करो। सन्त सतगुरु जीवों के कर्मों को काटने के लिए समय-समय पर उपाय बताते रहते हैं। जब शाकाहारी हो जाओगे, जानवरों का कटना बंद हो जाएगा, हवा-पानी शुद्ध होगी तभी इन बीमारियों से निजात मिलेगी। जीवन दान देने वाली औषधियों को आप घर के गमलों में भी लगा सकते हो।

सन्त उमाकान्त जी का सतसंग प्रतिदिन प्रातः 8:40 से 9:15 तक (कुछ समय के लिए) साधना भक्ति टीवी चैनल और अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर प्रसारित होता है।

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