"वफ़ा"
हम वफ़ा के नाम से ,
ख़ुद को मिटाते ही गये ।
वो वफ़ा के नाम से,
करते छलावा ही रहे ।
कौन कहता है ? वफ़ा में,
टीस ही मिलती सदा,
संग टीस गह्वरता सतत् ,
सिन्धु में हम तो जा मिले।
ज़िन्दगी इक चाह है ,
ज़िन्दादिली से जी सकूँ।
मौत में भी जि़न्दगी को ,
ढ़ूंढ़ हम जीते रहे।
देख करके भीड़ तुमने,
राह परिवर्तित किया।
पर वफ़ा के नाम हमको,
याद तुम करते रहे ।
क्या ख़ता हमने किया ,
याद करना तुम ज़रा।
जोड़ कर ह्रदय का रिश्ता,
स्नेह अन्तर्तम् किया।
पड़ के भौतिकता में तुमने,
दूर सात्विकता किया।
ले के सात्विकता को हम,
हर तपन सहते रहे ।
तुम बदल करके समय सम्,
रुख पवन सम्मुख किया ।
हम वफ़ की डोर पकड़े,
कञ्टक चुभन सहते रहे।
तुम चतुरता ओढ़ चादर,
ज़िन्दगी सुखमय किया।
हम वफ़ा लेकरके दामन,
अति ठोकरें खाते रहे ।
संग टीस गह्वरता सतत्,
सिन्धु में हम तो जा मिले।
रश्मि पाण्डेय
बिन्दकी ,फतेहपुर
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