नाना पुराणों वेदों और शास्त्रों का सार है श्रीरामचरितमानस.... ज्योति बाबा

 नाना पुराणों वेदों और शास्त्रों का सार है श्रीरामचरितमानस.... ज्योति बाबा 



श्रीरामचरितमानस व्यवहार का दर्पण है...ज्योति बाबा


 श्रीरामचरितमानस सदाचार की शिक्षा देने वाला एक महान ग्रंथ...ज्योति बाबा 

 

श्रीरामचरितमानस विश्व बंधुत्व एवं सर्वत्र प्रेम की भावना विकसित करने वाला महाकाव्य..ज्योति बाबा 


कानपुर । श्री रामचरितमानस राम के जीवन पर आधारित महाकाव्य है तुलसीदास जी ने इसकी रचना लोक कल्याण एवं स्वांता सुखाय को दृष्टि में रखकर की है उनकी मान्यता है कि राम उसी के हृदय में निवास करते हैं जो नैतिक मूल्यों का समर्थक एवं सदाचारी हो काम क्रोध लोभ मोह दंभ से रहित हो दूसरे की विपत्ति में दुखी रहने वाले तथा दूसरे की प्रसन्नता में सुखी रहने वाले व्यक्ति के हृदय में ही ईश्वर निवास करते हैं गोस्वामी तुलसीदास जी ने मानस में कहां है काम क्रोध मद मान न मोहा, लोभ न छोभ ना राग न द्रोहा, जिनके कपट दंभ नहीं आया,जिनके हृदय बसे रघुराया ।


 वस्तुतः रामचरितमानस सदाचार की शिक्षा देने वाला एक महान ग्रंथ है ऐसे महान ग्रंथ पर हिंदू समाज के ही निशाचरी प्रवृत्ति के सपा के राष्ट्रीय नेता द्वारा अभद्र टिप्पणी कर करोडो सनातन धर्मियो की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का महापाप किया है ऐसी निशाचर सोच रखने वालों का सनातन हिंदू समाज सार्वजनिक बहिष्कार करता है, उपरोक्त बात नशा मुक्त समाज आंदोलन अभियान कौशल के तहत सोसाइटी योग ज्योति इंडिया के तत्वाधान में नमो-नमो क्रांति फाउंडेशन एवं मिडास परिवार के सहयोग से सपा के राष्ट्रीय नेता द्वारा हिंदुओं की आस्था के महान ग्रंथ श्रीरामचरितमानस पर अभद्र टिप्पणी के विरोध स्वरूप आयोजित मानव श्रृंखला के समापन पर अंतरराष्ट्रीय नशा मुक्त अभियान के प्रमुख नशा मुक्त समाज आंदोलन अभियान कौशल के नेशनल ब्रांड एंबेसडर योग गुरु ज्योति बाबा ने कहीं,ज्योति बाबा ने आगे कहा कि जिस समय तुलसी का प्रादुर्भाव हुआ उस समय समाज में विषमता व्याप्त थी ऊंच नीच का भेदभाव ब्राह्मण शुद्र का भेदभाव तो था ही साथ ही निर्गुण सगुण का संघर्ष, शैव वैष्णो का संघर्ष ,ज्ञान भक्ति का संघर्ष अपनी चरम सीमा पर था, गोस्वामी तुलसीदास ने दार्शनिक क्षेत्र में समन्वय का प्रयास करने के लिए रामचरितमानस में कई प्रसंग कल्पित कर लिए हैं गोस्वामी जी ने रामचरितमानस को एक ऐसे दीपक के रूप में प्रस्तुत किया है जो जीवन के अंधेरे पथ में हमें प्रकाश दिखाता है। 

 कार्यक्रम संयोजिका मधुबाला एवं भजन गायिका ललिता जी ने कहा कि रामचरितमानस में तुलसी की भक्ति दास्य स्वभाव की है वे स्वयं को सेवक और प्रभु श्री राम को अपना स्वामी मानते हैं तथा उनके चरणों में निरंतर रत रहने का वरदान मांगते हैं अंत में सभी ने एक स्वर में ऐसे निशाचर सोच वाले सपा के तथाकथित सज्जन पुरुष,जो पूर्व में संवैधानिक पदों पर रह चुके हैं उन पर कानूनी आधार पर कठोर कार्रवाई करने की मांग सरकार से की है।

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