नियम-संयम से रहने पर साधना जल्दी और अच्छी बनती है
बम्बई के सेठ ने बताया निजी अनुभव, बाबाजी के आश्रम पर कोई दो महिना रह ले तो पेट भरने को हमेशा कमा लेगा और बड़े से बड़ा अपराधी माला पकड़ लेगा
रेवाड़ी (हरियाणा) बड़े-बड़े अपराधियों के हाथ में भी माला पकड़ा देने वाले, बच्चों में अच्छे संस्कार डालने वाले, जिनके मुख्य आश्रम का पता बाबा जयगुरुदेव आश्रम, जयगुरुदेव नगर, पिंगलेश्वर रेलवे स्टेशन के सामने, मक्सी रोड़, उज्जैन (मध्य प्रदेश) है, ऐसे इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु दुःखहर्ता, बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि बहुत संयम-नियम से साधकों को रहना चाहिए। जो संयम और नियम से रहते हैं, उनकी साधना जल्दी, अच्छे से बनती है। यहां तक कि कहा गया कि सतसंगी, भजनानंदी ही क्यों न हो, उसके यहां खाओ, पियो तो उसको भी अपने भजन में से देना पड़ेगा। यह लेना-देना तो होता ही होता है। कर्मों का लेना-देना तो चलता ही चलता है। यह तो नियम के अंतर्गत आ गया जैसे यहां लेना-देना होता है, जिसका लेते हो तो उसको देते हो, किसी को देते हो तो उससे लेते हो, किसी को खिलाते हो तो उसके घर जाने पर वो आपको खिलाता है, रिश्तेदार रिश्तेदार के यहां जाता है तो उसका स्वागत सत्कार उसी तरह से होता है। तो यह लेना-देना है। तो लेने-देने का तो यह संसार ही है। इस लेना-देना में कर्मों की अदायगी होती है। अब वो कर्म तो आ ही जाते हैं तो बताया गया आपको, कर्म फांस छूटे नहीं, कर्म फांस कैसे छूटता है? गुरु के आदेश से, गुरु की बताई हुई युक्ति से, उपाय से छूटता है। समय-समय पर गुरु युक्ति बताते रहते हैं। जो जैसा होता है, उसको उस तरह का उपाय बताते रहते हैं। जैसे कोई छोटा बच्चा है, बहुत ज्यादा वजन उठा कर नहीं ले जा सकता है तो उसको हल्का-फुल्का काम बता देते हैं कि तो चल ये यही काम करले। देखो गुरु महाराज (बाबा जयगुरुदेव जी) आश्रम पर श्रमदान सेवा कराते थे तो छोटे-छोटे बच्चे आते थे, मिट्टी ढ़ोने लगते, करने लगते थे तो गुरु महाराज कहते थे इस (बच्चे को) को एक (मिट्टी का) ढेला दे दो, कहते थे इसको दे दो, ले जा कर वहां डाल आओ, तो उससे वही काम कराते थे। उस सेवा (करने) से जो फल मिलता है, वह उस बच्चे को मिलता रहा। क्या फल मिला उसको? उसके संस्कार ही इस तरह के बने कि हमको सेवा करनी चाहिए और सेवा की आदत बन जाती है। जो अपने घर में झाड़ू लगाता है, कहीं भी झाड़ू लगाने में संकोच नहीं करेगा। और जो कभी झाड़ू लगाता ही नहीं, कोई काम नहीं करता, वह कहीं कुछ सीख भी नहीं पाता है। और वो तो इंतजार करता रहेगा कि हमारा कोई (दुसरा) काम कर दे, हमारा बिस्तर कोई लगा दे, हमारा बिस्तर कोई उठाकर हमारे साथ चले। अगर ऐसे लोग भी आ जाते हैं जो कुछ जानते समझते नहीं, नौकर सारा काम करते हैं, वो तो इंतजार करते हैं, उनको बताना पड़ता है कि ऐसे करो, वैसे करो। दूसरे का देख करके करते हैं। यह करते हैं तो हमको भी इसी तरह काफिले में करना चाहिए। लखनऊ में वाजिद अली बादशाह पर जब हमला हुआ तो भागे नहीं, पकड़े गए। तो लोगों ने पूछा आप क्यों नहीं भगे? बोले, कोई जूता पहनाने वाला नहीं था। जूता पहनता तब तो मैं भग जाता। ऐसे ही समझ लो आप कि वो कुछ सीख ही नहीं पाते, जान ही नहीं पाते। लेकिन जो सीख जाते हैं, उनको मालूम हो जाता है सब, वो तो कहीं भी सेट हो जाते हैं। पुरानी बात है, आश्रम पर बम्बई के एक बड़े सेठ आये थे, एक हफ्ता रहे, सब देखते रहे कहां क्या होता है। वो भी लगे सेवा में, मक्का की गुड़ाई में, पसीने से तर हो गए, क्योंकि कभी किये नहीं थे, सेवा में पिछड़ें तो बगल वाले उनका साथ दें। जब बम्बई लौटे, साथियों ने पूछा कहां एक हफ्ता बाबाजी के यहां बर्बाद किया? क्या जानकारी मिली? बोले मैंने दो चीजें देखा। वहां आश्रम पर अगर कोई दो महिना रह ले तो भूखा नहीं मरेगा, पेट भरने को अपना कमा लेगा, वहां कोई शर्म लिहाज नहीं रह जाता है। वहां तो सब काम सब लोग करते हैं। तुमने क्या किया? बोले मक्के की गुड़ाई कर के आये। दूसरी चीज? बम्बई के सभी बदमाश, चोर, माफिया, डकैत, सभी अपराधियों को वहां बाबाजी के यहां दो महीना कर दिया जाय तो सब सुधर जायेंगे, जो असलहा लिए रहते हैं, गोली चला देते हैं, सब माला पकड़ लेंगे। ऐसे बाबा हैं, न विश्वास हो तो पता देता हूँ, खुद देख आओ।
*साधना में शरीर और मन को साधना होता है*
अब तो साधना कुछ है नहीं ज्यादा, कुछ नहीं। दो चीज तो साधना है। शरीर को साधो और शरीर जब सध जाएगा तो मन को साधो। शरीर और मन सध गया तो सब सध गया। तब फिर समझो सब बात बन जाएगी। तो अभी आप शरीर को बैठने की आदत डालो, घाट पर बैठो चाहे (अंदर में कुछ दिव्य) दिखाई पड़े न, दिखाई पड़े लेकिन जगह न छोड़ो, बैठने की आदत न छोड़ो, अंदर में घाट न छोड़ो। कहा गया है- पड़ा रहे दरबार में, धक्का धनी का खाए, कभी तो गरीब नवाजे, जो दर छाड़ न जाए।