हिंदू मुस्लिम आस्था का प्रतीक चंदू मियां का ताजिया
हुसैनगंज फतेहपुर।लंबे इस्लाम जुबा तक ना आ सका पानी फिर तमाम जहां पर वहां बाहर पानी सही दाम कर्बला की याद रखें तारों ताजा हो जाती महजब इस्लाम के लिए हजरत इमाम हुसैन ने अपने आप को कुर्बान कर दिया 6 माह के मासूम अली असगर को नहीं बक्शा जिस को तीरों से छानी कर दिया जिस गर्दन को बचपन में नाना जान ने चूम कर कहा था मेरे लगते जिगर तुमको कर्बला में एक दिन अपनी गर्दन कटनी है नाना जैन ने किया वादा हजरत इमाम हुसैन ने निभाया खुश्क और प्याज की शिद्दत शहीदों के लबों तक एक कत्र पानी की बूंद महेश्वर ना हो सकी क्योंकि यही है मंजूरे खुदा बंदी शहीदों के खून की खुशबू कर्बला की मिट्टी से आज भी में इस्लाम महसूस करते हैं यादें हुसैन मानने वालों को दीवानगी का आलम है निराला है हुसैन की दीवानगी में अपने आप को अंदाज में अपने को फिरोज देते हैं हुसैनगंज कस्बे में मोहर्रम के चांद दिखने के दसवे दिन चंदू मियां का ताजिया ईमानबाड़े से उठाकर हुसैनगंज कस्बे का भ्रमण करते हुए दुर्गा चौराहा मुस्लिम चौक पुरानी बाजार होते हुए कर्बला को जाते हैं जहां पर जारिनों के हुजूम देखने को मिलता है कस्बे में आसपास गांव के लोग हम देखने के लिए आते हैं हुजूम मैं देखने को मिलता है की कस्बे में लंगर भी बंटवाया जाता है आलम लेकर लोग रस्म देगी के लिए इमाम बड़े ताजिया चांद सा आते हैं सैकड़ो वर्ष पुरानी परंपरा को आज भी रन बिरादरी जीवित रखे हुए हैं।