जानें- क्‍या है चीन का 1959 का प्रस्‍ताव जिसे भारत पर थोपना चाहता है ड्रैगन, इसके पीछे क्‍या थी सोच

नई दिल्‍ली , बीते करीब पांच माह से चीन से लगती भारतीय सीमा पर स्थिति तनावपूर्ण है। इसकी वजह है कि चीन का अड़ियल रवैया और उसकी विस्‍तारवादी नीति। इसी नीति के तहत वो पूर्वी लद्दाख पर कब्‍जा करने की कोशिश में लगा है। लद्दाख को लेकर चीन की तरफ से आया ताजा बयान उसके अड़ियल रवैये और विस्‍तारवादी नीति को ही दर्शाता है। चीन की तरफ से कहा गया है कि भारत ने लद्दाख पर अवैध कब्‍जा किया हुआ है। चीन यहीं पर नहीं रुका, बल्कि उसने कहा कि वो 1959 के प्रस्‍ताव के तहत भारतीय-चीन के बीच तय सीमा को लाइन ऑफ एक्‍चुअल कंट्रोल मानता है। इसके अलावा चीन का ये भी कहना है कि वो पूर्वोत्‍तर राज्‍यों से लगती चीन की सीमा को तय करने के लिए बनाई गई मैकमोहन लाइन को नहीं मानता है। मैकमोहन लाइन को 1914 में तिब्‍बत शिमला में हुए समझौते के बाद अमल में लाया गया था। ये लाइन तिब्‍बत और भारत के पूर्वोत्‍तर राज्‍यों की सीमा को तय करती है।


1959 का चीनी प्रस्‍ताव 


चीन ने इस बयान के तहत एक बार फिर से उस प्रस्‍ताव का जिक्र किया है, जिसको भारत की किसी भी सरकार ने नहीं माना है। आपको बता दें कि इस प्रस्‍ताव के पीछे चीन के तत्‍कालीन प्रीमियर झाऊ एनलाई का दिमाग था। चीन का रुख सीमा पर जैसा अब दिखाई देता है वैसा ही पहले भी था। यही वजह थी कि भारत-चीन सीमा पर हालात हमेशा ही तनावपूर्ण रहे। कभी-कभी ये तनाव दोनों देशों की सेनाओं के बीच छिटपुट झड़पों और कभी युद्ध का रूप भी अख्तियार कर लेता था। 24 अक्टूबर 1959 को पहली बार चीन के प्रीमियर एनलाई ने भारतीय प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को एक पत्र लिखा था। इसमें कहा गया था कि चीन की कोई भी सरकार भारत के पूर्वोत्‍तर में खींची गई मैकमोहन लाइन को नहीं मानती है। इसमें ये भी कहा गया था कि चीन और भारत के बीच इसको लेकर कभी भी कोई आधिकारिक सीमा तय नहीं हुई है।


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