झाऊपुर वार्ड में शत्रु संपत्ति को लेकर बड़ा खेल
एक ने कराई नीलामी तो दूसरे ने करा ली वरासत, बड़े भूभाग पर सैकड़ों पेड़ कटवा शुरू हो गई प्लाटिंग
प्रशासनिक जिम्मेदारो की भूमिका पर फ़िर उठी उंगली
फतेहपुर। नगर पालिका परिषद के झाऊपुर वार्ड में शत्रु संपत्ति को लेकर बड़ा खेल प्रकाश में आया है। कई बीघे जमीन को सिस्टम के अलंबरदारो की मिलीभगत से पार लगाने की प्रक्रिया तेजी से शुरू हो गई है। इस जमीन पर खड़े एक सैकड़ा के करीब फलदार वृक्षों को भी चोरी- छिपे काट कर ठिकाने लगाया जा चुका है। वहीं समतलीकरण के बाद अब प्लाटिंग भी शुरू हो गई है। इस संदर्भ में प्रशासनिक जिम्मेदार फिलहाल मौन हैं। उनका कहना है कि अगर कोई शिकायत आती है तो जांच करवाई जाएगी।
गौरतलब है कि सर्वोच्च एवं उच्च न्यायालय के साथ-साथ शासन द्वारा सरकारी जमीनों को लेकर समय-समय पर कड़े दिशा निर्देश जारी किए जाते रहे हैं, जिसमें किसी भी हाल में ऐसी जमीन जिसका ताल्लुक सरकारी व्यवस्था से हो उस पर कब्जा ना होने देने के निर्देश होते है किंतु व्यवस्था से जुड़े सिस्टम के अलंबरदार ऐसे आदेशों को धता बताते हुए अपनी ऊंची पहुंच और धनबल के साथ-साथ बाहुबल से न सिर्फ बलात कब्जा करते रहे हैं, बल्कि जमीनों पर खड़े वृक्षों को कटवा कर बगैर लेआउट आदि की प्रक्रिया को पूर्ण किए प्लाटिंग करके बेचते भी रहे है। झाऊपुर वार्ड मे जिस तरह से आजादी के समय देश छोड़कर जाने वाले दो अल्पसंख्यको की जमीन को कुछ साल पहले योजनाबद्ध ढंग से वरासत के तहत दुरुस्त कराया गया, उसके बाद अब इसे पार लगाने की पूरी तैयारी है।
सूत्रो के अनुसार देश की आजादी के समय हुए बंटवारे में शहर के महाजरी मोहल्ला निवासी मोहम्मद अहमद पुत्र मोहम्मद हुसैन व उनकी मां ने देश छोड़कर पाकिस्तान जाने का निर्णय लिया जिससे उनकी समूची चल अचल संपत्ति शत्रु संपत्ति के रूप में सरकारी दस्तावेजों में दर्ज हो गई। दस्तावेज बताते हैं कि दोनों की संपत्तियां 1975 मे एक रणनीति के तहत लखनऊ से नीलाम कराई गई और फिर 2013 में शेष भू भाग को एक अन्य द्वारा वरासतन दूसरे नाम पर चढ़वा लिया गया। बताते हैं कि नीलाम करने वाला रामदास पूर्व में एक न्यायालय में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के पद पर तैनात था जिसने कानूनी बारीकियों को समझते हुए इस खेल को अंजाम दिया। सवाल ये उठता है कि जब दस्तावेजों में यह संपत्ति निस्क्रांती संपत्ति के रूप में दर्ज थी तो वरासत की कार्यवाही किन परिस्थितियों में अंजाम दी गई। इतना ही नहीं तत्कालीन लेखपाल नरपत सिंह की भूमिका पर भी सवाल उठना लाजमी है। बताते चलें कि जिस समय वारासत की कार्यवाही को दस्तावेजों में अंकित किया गया उस समय उपजिलाधिकारी सदर के पद पर विवेक श्रीवास्तव एवं तहसीलदार सदर की सीट पर मोती लाल यादव तैनात थे। दोनो के कार्यकाल में जमीनों के कई और मामलों में खेल होने का हवाला मिलता है...! सूत्रों की माने तो इस पूरे खेल में इन दोनों अधिकारियों की भूमिका की भी गंभीरता से जांच हो तो इस मामले के साथ साथ कई और बड़े मामलों में इनकी भूमिका उजागर हो सकती हैं।
इस संदर्भ में जब सदर तहसील के एक जिम्मेदार अधिकारी से उनका पक्ष जानने का प्रयास किया गया तो उन्होंने दांतो तले उंगली दबाते हुए अपना नाम न छापने की शर्त पर कहा कि बड़ा मामला है। यह उजागर हुआ तो कईयों की नौकरी खतरे में पड़ जाएगी। वही एक अन्य अधिकारी का कहना रहा कि इस संदर्भ में अगर कोई शिकायत आती है तो कार्यवाही की जाएगी।